जानिए कैलाश पर्वत के कुछ रहस्य
तिब्बत | माउंट एवरेस्ट की तुलना में कैलाश पर्वत की ऊंचाई करीब 2 हजार मीटर कम है और एवरेस्ट की चोटी पर आज तक करीब 700 पर्वतारोही चढ़ चुके हैं किन्तु कैलाश पर्वत पर आज तक कोई भी व्यक्ति चढ़ने में सफल नहीं हो पाया है और आपको बता दे कि तिब्बत में स्थित कैलाश पर्वत को भगवान शिव का पावन धाम माना जाता है मान्यता है कि वहां पर भोले शंकर अपने पूरे परिवार और दूसरे देवी – देवताओं के साथ निवास करते हैं लोगों की यह मान्यता है कि कैलाश पर्वत पर भगवान शिव अपने परिवार के साथ रहते हैं इसलिए कोई भी जीवित इंसान वहां जीवित ऊपर नहीं पहुंच सकता , मरने के बाद या जिसने कभी भी कोई पाप न किया हो केवल वही कैलाश पर्वत पर जा सकता है एवं पौराणिक कथाओं के अनुसार कई बार असुरों और नकारात्मक शक्तियों ने कैलाश पर्वत पर चढ़ाई करके इसे भगवान शिव से छीनने का प्रयास किया फिर भी उनकी मंशा कभी पूरी नहीं हो सकी , यह बात आज भी कैलाश पर्वत पर उतनी ही लागू होती है |
बता दे कि ऐसा भी माना जाता है कि कैलाश पर्वत पर थोड़ा सा ऊपर चढ़ते ही व्यक्ति दिशाहीन हो जाता है और बिना दिशा के चढ़ाई करना मतलब मौत को दावत देना है इसलिए कोई भी इंसान आज तक कैलाश पर्वत पर नहीं चढ़ पाया है कहते हैं जो भी इस पहाड़ पर चढ़ने की कोशिश करता है वो आगे नहीं चढ़ पाता , उसका हृदय परिवर्तन हो जाता है और उसमें वैराग्य जागने लगता है तथा करीब 29 हजार फीट ऊंचे माउंट एवरेस्ट पर चढ़ना तकनीकी रूप से आसान है लेकिन कैलाश पर्वत पर चढ़ने का कोई सीधा रास्ता नहीं है वहां चारों ओर खड़ी चट्टानें और हिमखंड हैं ऐसी मुश्किल चट्टानें चढ़ने में बड़े – से – बड़ा पर्वतारोही भी अपने घुटने टेक देता है यह भी कहते हैं कि वहां पर कुछ अलौकिक शक्तियां काम करती हैं जिससे वहां पर शरीर के बाल और नाखून 2 दिन में ही इतने बढ़ जाते हैं जितने 2 हफ्ते में बढ़ने चाहिए , चढ़ाई करने वालों का शरीर मुरझाने लगता है और चेहरे पर बुढ़ापा नजर आने लगता है |
आपको यह भी बता दे कि सन 1999 में रूस के वैज्ञानिकों की टीम ने तिब्बत पहुंचकर एक महीने तक कैलाश पर्वत के बारे में शोध किया , जिसके बाद वैज्ञानिकों ने कहा कि इस पहाड़ की तिकोने आकार की चोटी प्राकृतिक नहीं , बल्कि एक पिरामिड है जो बर्फ से ढकी रहती है यही कारण है कि माउंट कैलाश को शिव पिरामिड के नाम से भी जाना जाता है जो भी इस पहाड़ को चढ़ने निकला , या तो मारा गया , या बिना चढ़े वापस लौट आया एवं इस वैज्ञानिक सर्वे के करीब 8 साल बाद वर्ष 2007 में रूसी पर्वतारोही सर्गे सिस्टिकोव अपनी टीम के साथ माउंट कैलाश पर चढ़ाई के लिए निकला , कुछ दूर चढ़ने पर ही उन्हें और उनकी पूरी टीम के सिर में भयंकर दर्द होने लगा , जिसके बाद उनके पैरों ने जवाब दे दिया , उनके जबड़े की मांसपेशियां खिंचने लगीं और जीभ जम गई , मुंह से आवाज़ निकलना बंद हो गई , वे समझ गए कि इस पर्वत पर चढ़ना मौत को दावत देना है उन्होंने तुरंत टीम के साथ नीचे उतरना शुरू कर दिया , नीचे उतरने के बाद उनकी टीम को आराम मिल पाया एवं तिब्बत पर कब्जा कर चुके चीन के इशारे पर उसके कुछ पर्वतारोहियों ने भी कैलाश पर चढ़ाई की कोशिश की , उन चीनी पर्वतारोहियों को भी सफलता नहीं मिली और दुनियाभर से उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा , इसके बाद विरोध से हारकर चीन सरकार ने आदेश जारी कर कैलाश पर्वत पर चढ़ाई करने से रोक लगा दी |