आध्यात्मिक ज्ञान का प्रकाश पर्व गुरु पूर्णिमा :अशोक विश्वकर्मा

वाराणसी  | महर्षि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को लगभग 3000 ईसा पूर्व में हुआ था उनके सम्मान में ही आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है ऐसी मान्यता है कि इसी दिन व्यास जी ने अपने शिष्यों और मुनियों को सर्वप्रथम श्री भागवत पुराण का ज्ञान दिया था इसलिए इसे व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है चार वेद 18 पुराण एवं महाभारत सहित कई अन्य ग्रंथों के रचना का श्रेय महर्षि वेदव्यास को दिया जाता है , वेदों का विभाजन करने के कारण इनका नाम वेद व्यास पड़ा जबकि इनका वास्तविक नाम कृष्ण द्वैपायन है वह संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे इन्हें आदिगुरु भी कहा जाता है यह पर्व पौराणिक काल से गुरु पूजन के लिए परंपरागत रूप में प्रचलित है गुरु पूर्णिमा के इस अवसर पर शिष्य अपने गुरुजनोंं की भक्ति भाव से आदर सहित पूजा अर्चना करते हैं हिंदू धर्म में गुरुजनों को भगवान से भी उपर सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त है |

क्योंकि गुरु हमें अज्ञानता के अंधेरे से ज्ञान के प्रकाश तथा परमेश्वर की ओर ले जाता है इस वजह से देशभर में गुरु पूर्णिमा का पर्व बेहद धूमधाम से मनाया जाता है इस साल गुरु पूर्णिमा 5 जुलाई को मनाई जा रही है इस दिन चंद्र ग्रहण भी पड़ रहा है शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार या मूल अज्ञान और रु का अर्थ किया गया है- उसका निरोधक इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है अर्थात अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को ‘गुरु’ कहा जाता है गुरु और शिष्य के बीच केवल शाब्दिक ज्ञान का ही आदान-प्रदान नहीं होता बल्कि गुरु अपने शिष्य के संरक्षक के रूप में भी कार्य करता है और उसका कभी अहित सोच भी नहीं सकता यही विश्वास गुरु के प्रति उसकी अगाध श्रद्धा और समर्पण का कारण है इस प्रकार गुरु पूर्णिमा का पर्व आध्यात्मिक ज्ञान के प्रकाश का महान पर्व है जो गुरु के ज्ञान और मार्गदर्शन से परमेश्वर से मिलाने का मार्ग प्रशस्त करता है ।