कल तक दुश्मन दिख रही पार्टिया क्यों बन गए सगे भाई ?

जहां शिवसेना और बीजेपी एक दूसरे पर मुद्दों का प्रहार कर रही थी आखिर लोकसभा चुनाव से ठीक पहले शिवसेना और बीजेपी के गठबंधन में पड़ी गांठ खुल गई है |

आखिर एक दूसरे पर मुद्दों का वार करने वाली पार्टी शिवसेना और बीजेपी अपनी निजी फायदा के लिए फिर से एक हो गयी है , आखिर सही कहाँ गया है कि सत्ता में रहने के लिए राजनितिक पार्टिया कुछ भी कर सकती है कभी एक दूसरे पर सवालों का बौछार करती है तो कभी गले मिलती है |

आखिरकार उद्धव ठाकरे बीजेपी के साथ गठबंधन के लिए तैयार हो ही  गए हैं , सीटों के बंटवारे पर हुए समझौते के अनुसार लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी महाराष्ट्र की कुल 48 सीटों में से 25 पर चुनाव लड़ेगी |

तो  वहीं शिवसेना के हिस्से 23 सीट आई हैं , इसके अलावा अक्टूबर 2019 में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी दोनों दलों में समझौता हो गया है , विधान सभा चुनाव में दोनों दल कुल 288 विधानसभा सीटों में से बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लड़ेंगे |

शिवसेना और बीजेपी 1989 से गठबंधन में हैं , महाराष्ट्र में इस गठबंधन को ‘महायुति’ कहा जाता है कि  1995 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में इसी गठबंधन के चलते बीजेपी-शिवसेना पहली बार सत्ता में आए थे |

1995 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले प्रमोद महाजन और बाल ठाकरे ने सीटों के बंटवारे के एक फॉर्मूले पर समझौता किया था , इसके हिसाब से लोकसभा चुनाव में बीजेपी बड़ा भाई बनेगी , माने 48 में से 25 सीटें बीजेपी के खाते में जाएंगी तो , वहीं विधानसभा चुनाव में शिवसेना फ्रंटफुट पर खेलेगी |

माने 288 में से 150 सीटें शिवसेना के पास रहेंगी , मुख्यमंत्री की कुर्सी भी शिवसेना के पास ही रहेगी , 2014 के लोकसभा चुनाव में दोनों दल गठबंधन में लड़े थे , मोदी लहर के चलते बीजेपी अपने हिस्से की 25 में 22 सीटें जीतने में कामयाब रही , वहीं शिवसेना को भी 22 में 18 सीटों पर कामयाबी हासिल हुई |

मई 2014 में लोकसभा चुनाव के नतीजे आए और अक्टूबर 2014 में महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव होने थे , देश में मोदी लहर थी , यही वजह थी कि महाराष्ट्र बीजेपी शिवसेना के 1995 के फॉर्मूले पर राजी नहीं हुई , कई दौर की वार्ता के बावजूद दोनों दलों में गठबंधन नहीं हो पाया इसलिए  दोनों पार्टी अलग-अलग लड़ीं |

मोदी लहर का असर फिर देखा गया था , बीजेपी को 288 में से 122 पर कामयाबी हासिल की थी  पिछले विधानसभा के मुकाबले यह 76 सीटों की बड़ी छलांग थी , वहीं शिवसेना का स्कोर 63 पर सिमट गया , हालांकि शिवसेना को भी पिछले चुनाव के मुकाबले 2014 के विधानसभा चुनाव में फायदा हुआ था , लेकिन महज 18 सीटों का. 288 सीटों वाली विधानसभा में बहुमत के लिए 145 सीटें चाहिए थीं |

जो कि दोनों पार्टियों के पास नहीं थीं , ऐसे में दोनों दलों को चुनाव के बाद गठबंधन के लिए मजबूर होना पड़ा , इसके बाद हुए 2017 के BMC चुनाव बृहन्मुंबई महानगरपालिका या BMC में 1971 से शिवसेना की मजबूत पकड़ रही है , 1996 से BMC पर लगातार शिवसेना का कब्जा बना हुआ था |

2017 के BMC चुनाव से ठीक पहले यह अटकले लग रही थीं कि शायद बीजेपी और शिवसेना फिर से एक हो जाएं. दोनों सूबे में साथ मिलकर सरकार चला रहे थे , लेकिन ऐसा हुआ ही नहीं  दोनों पार्टी अलग-अलग चुनाव लड़ीं , शिवसेना को इस चुनाव में मिलीं 84 सीट , यह पिछले चुनाव के मुकाबले 9 ज्यादा थीं |

तो  वहीं बीजेपी को मिली 82 सीट , यह पिछले चुनाव के मुकाबले 51 सीट का बड़ा उछाल था , लेकिन यहां भी स्थिति विधानसभा चुनाव जैसी हो गई , कुल 227 सीटों वाली BMC में बहुमत के लिए 113 सीट चाहिए थीं |

ऐसे में दोनों दलों को फिर से गठबंधन करना पड़ा शिवसेना पिछले पांच साल से बीजेपी के साथ महाराष्ट्र में सरकार चला रही है, लेकिन शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे लगातार बीजेपी पर हमलावर रहे हैं , चाहे वो सामना के सम्पादकीय हो या सार्वजानिक मंच. उद्धव बीजेपी के अच्छे दिनों के वायदे का मखौल उड़ाते रहे हैं |

पिछले कई दिनों से दोनों दलों में लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन पर बातचीत चल रही थी लेकिन नतीजा सिफर रहा था , शिवसेना गठबंधन के लिए 1995 के सीट साझा करने के फॉर्मूले पर अड़ी हुई थी , वहीं बीजेपी इस फॉर्मूले को मानने के लिए तैयार नहीं थीं , आखिरकार दोनों दलों को अपने तेवर ढीले करने पड़े हैं |

आखिर शिवसेना को चुनाव से ठीक पहले राम मंदिर की इतनी याद क्यों आ रही है ?

वजह साफ़ है , बीजेपी पिछले पांच साल से केंद्र की सत्ता में है , दोनों दल पिछले तीन दशक से हिंदुत्व की राजनीति करते आए हैं , राम मंदिर बनावाने का मुद्दा हिंदू वोट बैंक के लिए भावना से जुड़ा हुआ मुद्दा है , 2014 में बीजेपी की पूर्ण बहुमत सरकार बनने के बाद बहुत से लोगों को उम्मीद थी कि बीजेपी अयोध्या में राम मंदिर बनवाएगी. फिलहाल मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है और सरकार में होने के बावजूद बीजेपी इस मुद्दे पर कुछ नहीं कर पाई , इससे कोर हिंदुत्व वोटर बीजेपी से नाराज भी हैं , शिवसेना इसी नाराजगी को अपने पक्ष में भुनाना चाहती है , इसिहास में भी शिवसेना बीजेपी से ज्यादा रैडिकल हिंदुत्ववादी संगठन रहा है , राम मंदिर मुद्दे का गठबंधन की प्रेस कॉन्फ्रेंस में आना इसी इमेज को बचाए रखने की कवायद भर है |