चीन और भारत दोनों देशों की पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियां-डॉ. अरूण विजय

ठाणे । जैन मुनि डॉ. अरुण विजय ने कहा कि चीन व भारत दोनों देशों की चिकित्सा की पद्धति अलग है , उन्होंने बताया की भारत देश अरबों खरबों साल पुराना है भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति सनातन कालीन प्राचीन है , यद्यपि चीन भूखंड भी हजारों वर्ष प्राचीन है , प्राचीन सभ्यता वाला देश है , दोनों देशों की प्रत्येक बात एक दूसरे से सर्वथा अलग ही है, न तो सभ्यता मिलती है और न ही संस्कृति मिलती है , आहार खानपान की प्रक्रिया पद्धति कुछ भी नहीं मिलता है यद्यपि बौद्ध धर्म भारत से चीन में गया , काफी लंबे काल तक टिका, फैला , लेकिन बौद्ध धर्म का चीनी लोगों की सभ्यता संस्कृति पर इतना ज्यादा कोई प्रभाव दीर्घकाल तक नहीं रही दूसरी तरफ बौद्ध धर्म में अहिंसा के सिद्धांत जैन धर्म के सिद्धांत से बिल्कुल ही अलग किसम के हैं या ऐसे कहें कि सर्वथा विपरीत प्रकार के हैं , जैन धर्म भारत देश में पनपा है बढा है भारत से दुनिया के कई देशों में फैला है , लेकिन प्रमाण काफी कम रहा है, भले ही प्रमाण कम रहा हो लेकिन मौलिक सिद्धांतों ठोस मजबूत होने के कारण विश्व में जहां कहीं भी जैन धर्म बढा फैला वहां अहिंसा के सिद्धांत की पक्कड आचरण में वर्षों से आज दिन तक दिख रही है , भारत देश में हजारों वर्षों से ऋषि-मुनियों की परंपरा चल रही है ।

वे राजघरानों के युवराज आदि कई घरों के पुत्रों को पढ़ाते सिखाते भी थे , गुरुकुल की परंपरा भारत देश में सदियों से चली आ रही है, ऐसे अनेक ऋषि मुनि जंगल में वनस्पतियों के गुणधर्म पहचानकर औषधियां घुंटते थे, बनाते थे , उससे हजारों लोगों की चिकित्सा की जाती थी , चीन देश में ऋषि मुनियों की परंपरा नहीं रही , वहां के लोग जंगलों में जाकर जंगली प्राणियों की हिंसा शिकार आदि की प्रवृत्ति हद से ज्यादा करते थे , फिर शहरों में उनके अंगों की औषधियों के रूप में वितरण करते थे , आजीविका चलाते थे , प्राणियों की हिंसा को रोकने वाला भी कोई नहीं हुआ , साम्यवादी नीति के कारण आखिर अर्थोंपार्जक थी, इसलिए कोई भी क्यों रोके ?

आज दिन तक भी चीन में ऐसी पारंपरिक चिकित्सा पद्धति का प्रचलन है , परंपरा में हिंसा का प्रचलन काफी ज्यादा है चीन की गलियों में रास्तों पर भी ऐसे जंगली प्राणियों आदि का मांस, उनके अंग खाते हुए दिखाई देते हैं , खुले आम रास्तों पर गलियों में अनेक जात के पक्षियों पशुओं के मांस आदि अंगों की अलग-अलग वैरायटीयां बनाने बेचने खाने का प्रचलन पूरी दुनिया के अनेक देशों की अपेक्षा हद से ज्यादा है , काम शक्ति बढ़ाने के लिए भी ऐसे प्राणियों के अंग खाते हैं  लाखों कुत्तों को यह चीनी लोग खा जाते हैं, जब चमगादड़ खाने का रिवाज पूरी दुनिया में कहीं नहीं है सिर्फ चीन में ही है इतना करोना होने के बावजूद भी ऐसी ही मिट मार्केट पुनः धड़ल्ले से चल रही है यह बड़ा दुखद विषय है ।