महाराष्ट्र में रद्द हुआ मराठा आरक्षण

मुंबई |       सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में मराठा समुदाय को दिए आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया है यह आरक्षण आर्थिक और सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर दिया गया था , कोर्ट ने कहा कि 50 फीसदी आरक्षण सीमा तय करने वाले फैसले पर फिर से विचार की जरूरत नही है मराठा आरक्षण इस 50 फीसदी सीमा का उल्लंघन करता है सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद CM उद्धव ठाकरे ने अपने आधिकारिक वर्षा बंगले पर एक बैठक बुलाई है इस बैठक में सरकार के पास बचे कानूनी विकल्प और फैसले के बाद कानून व्यवस्था के मुद्दे पर चर्चा होगी , सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पीजी मेडिकल पाठ्यक्रम में पहले किए गए दाखिले बने रहेंगे , पहले की सभी नियुक्तियों में भी छेड़छाड़ नहीं की जाएगी , इन पर फैसले का असर नहीं होगा , सुप्रीम कोर्ट के पांच जज जस्टिस अशोक भूषण , जस्टिस एल नागेश्वर राव , जस्टिस एस अब्दुल नजीर , जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस एस. रवींद्र भट की संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया , सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ है जिसमें बॉम्बे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के फैसले को सही ठहराया था , हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी , देश की शीर्ष अदालत के तीन जजों की बेंच ने सितंबर 2020 में आरक्षण पर रोक लगाते हुए इसे 5 जजों की बेंच को ट्रांसफर कर दिया था अब इसी पर अदालत ने फैसला सुनाया है           |

आपको बता दे कि संविधान पीठ के मामले में सुनवाई 15 मार्च को शुरू की थी और 26 मार्च को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था , इस मुद्दे पर लंबी सुनवाई में दायर उन हलफनामों पर भी गौर किया गया कि क्या 1992 के इंदिरा साहनी फैसले (मंडल फैसला) पर बड़ी पीठ की ओर से पुनर्विचार करने की जरूरत है कोर्ट ने इस बात पर भी सुनवाई की थी कि क्या राज्य अपनी तरफ से किसी वर्ग को पिछड़ा घोषित करते हुए आरक्षण दे सकते हैं या संविधान के 102वें संशोधन के बाद यह अधिकार केंद्र को है  ? इस सुनवाई के दौरान संवैधानिक बेंच ने सभी राज्यों को नोटिस जारी किया था , कई राज्यों में 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण दिया जा रहा है सुप्रीम कोर्ट इसके पीछे राज्य सरकारों का तर्क जानना चाह रहा है आपको यह भी बता दे कि केंद्र सरकार ने महाराष्ट्र का समर्थन करते हुए कहा था कि संविधान में हुए 102वें संशोधन से राज्य की विधायी शक्ति खत्म नहीं हो जाती , संविधान में अनुच्छेद 342A जोड़ने से अपने यहां सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े तबके की पहचान की राज्य की शक्ति नहीं छिन गई है दरअसल मराठा आरक्षण विरोधी कुछ वकीलों ने यह दलील दी थी कि संविधान में अनुच्छेद 342A जुड़ने के बाद राज्य को यह अधिकार ही नहीं कि वह अपनी तरफ से किसी जाति को पिछड़ा घोषित कर आरक्षण दे दें       |

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