राजस्थान में सियासत के बदलते सुर

राजस्थान की राजनीति में सत्तारूढ़ दल के विधायकों की ओर से सरकार गिराने का षडयंत्र रचने तथा असंतुष्ट
गतिविधियों को चलाने का घटनाक्रम पहली बार नहीं हुआ हैं राजस्थान गठन के साथ ही ऐसे घटनाक्रमों की शुरुआत हो गई थी पर ये दीगर बात हैं कि इन कोशिशों के बावजूद असंतुष्टों को बड़ी कामयाबी नहीं मिल पाई सरकार गिराने की ऐसी घटना व दुर्घटनाओं से बचने तथा असंतुष्ट गतिविधियों को देखते हुए मुख्यमंत्री अवश्य बदले गए   |

माथुर दूसरी बार ऐसे बने थे सीएम
हरिदेव जोशी को हटाकर 1988 में शिवचरण माथुर को मुख्यमंत्री बनाए जाने का घटनाक्रम तो काफी दिलचस्प
था जानकारों की माने तो हरिदेव जोशी के पक्ष में बहुमत होते हुए भी कांग्रेस आलाकमान के निर्देश पर जोशी को पद त्याग देना पड़ा था और उनके स्थान पर माथुर मुख्यमंत्री बनाये गए थे , जोशी को सीएम पद से हटाने के लिए जो असंतुष्ट गतिविधियां चली थी , उस समय समाचारों को लेकर मीडिया में भी आपसी युद्ध सा छिड़ गया था एक ही समूह के दो अखबारों मेें से एक में छप रहा था कि ‘जोशी हटेंगे‘ जबकि इसी समूह के अंग्रेजी अखबार में ‘जोशी की कुर्सी को कोई खतरा नहीं‘ आदि हैडलाइन से खबरे काफी दिनों तक छपी थी ,लेकिन उस समय वर्तमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हुआ करते थे जिन्हें बाद में माथुर सरकार में गृह मंत्री बनाया गया था , हलाँकि  शिवचरण माथुर को मुख्यमंत्री बनाने में गहलोत खेमे ने तो मदद की ही थी , इसमें अहम भूमिका सदी के महानायक बिग बी अमिताभ बच्चन और तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री बूटासिंह की भी थी , बच्चन राजीव गांधी के दोस्त व बूटासिंह राजीव गांधी के करीबी नेताओं में माने जाते थे हालांकि उस समय बाड़ेबंदी जैसा नाटकीय घटनाक्रम नहीं हुआ था क्योंकि जोशी ने कांग्रेस आलाकमान के कहने पर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे शिवचरण माथुर के लिए मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ कर दिया था ।
माथुर के मुख्यमंत्री बनने के बाद 1989 में असंतुष्ट गतिविधियों के कारण सरकार एक बार फिर संकट में आ गई थी लेकिन लेखानुदान पारित करवा सरकार को संवैधानिक संकट से बचा लिया गया था हुआ यूं था कि असंतुष्टों ने बजट सत्र के दौरान अपनी ही सरकार के नाक में दम कर लिया था तथा 17 मार्च 1989 को असंतुष्ट विधानसभा की कार्यवाही का बहिष्कार कर सदन से चले गए थे कांग्रेस आलाकमान ने फ्लोर पर कभी अल्पमत में आने की संवैधानिक स्थिति को भांपते हुए माथुर को लेखानुदान पारित करवा विधानसभा का सत्रावसान करवाने के निर्देश दिए थे यहीं कारण था कि उस वर्ष पूर्ण बजट पारित ना करवा 24 मार्च 1989 को लेखानुदान पारित करवाया गया था , अशोक गहलोत को पीसीसी अध्यक्ष पद से हटाकर हीरालाल देवपुरा को पार्टी संगठन की कमान सौंपी गई , मंत्रिमंडल में फेरबदल कर गहलोत सहित कई मंत्री बनाये गए थे उस समय गहलोत विधायक नहीं सांसद थे ।
सुकून से राज नहीं कर पाए माथुर
शिवचरण माथुर दो बार राजस्थान के मुख्यमंत्री तो रहे पर वे दोनों ही बार सुकून से राज नहीं कर पाए माथुर को पहले कार्यकाल में राजा मानसिंह हत्याकांड के कारण कुर्सी गंवानी पड़ी जबकि दूसरा कार्यकाल तो इतना उठापटक वाला रहा कि राजस्थान में लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की करारी हार के कारण 29 नवम्बर 1989 को इस्तीफ़ा देना पड़ा था ऐसे में असम के राज्यपाल पद से इस्तीफा दिलवा कर हरिदेव जोशी को फिर से सत्ता की कमान सौंपी गई थी , कानूनी लड़ाई के साथ वर्तमान में कुर्सी को लेकर पंगा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बनाम पूर्व उपमुख्यमंत्री व पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के बीच है जिसमें दोनों ने ही अपने समर्थकों की बाड़ेबंदी कर रखी हैं , गहलोत दिल्ली रोड स्थित फेयरमाउंट होटल में विधायकों सहित कैम्प किए हुए है जबकि सचिन हरियाणा में डेरा जमाएं हुए हैं राज्य में चल रहे इस राजनीतिक घटनाक्रम का क्या पटाक्षेप होता हैं ये अभी भविष्य के गर्भ में हैं इसीलिए सबकी नजर बनते बिगड़ते राजनीतिक घटनाक्रमों पर है ।
सीएम की कुर्सी को लेकर हुए प्रमुख घटनाक्रम
– आम चुनावों से पूर्व राजस्थान में हीरालाल शास्त्री के नेतृत्व में प्रथम सरकार का गठन 30 मार्च 1949 को हुआ था लेकिन सवा दो माह बाद ही प्रदेश कांग्रेस कमेटी अपनी ही सरकार के खिलाफ11 जून 1949 को अविश्वास प्रस्ताव ले आई जिसके कारण शास्त्री को हटाना पड़ा था ।
– कांग्रेस के ही जयनारायण व्यास की सरकार के खिलाफ मोहनलाल सुखाडिया ने ताल ठोकी थी सुखाडिय़ा विधायक दल के मुकाबले में विजयी हो 13 नवम्बर 1954 को मुख्यमंत्री बने थे ।
– 1990 में भैंरोसिंह शेखावत सरकार जनतादल के समर्थन वापस लेने से अल्पमत में आ गई थी जिसे जनता दल के 22 विधायकों ने दिग्विजयसिंह के नेतृत्व में अलग गुट बना कर बचाया था ।
– 1996 में भंवरलाल शर्मा ने कुछ विधायकों को लेकर भैंरोसिंह शेखावत सरकार गिराने की कोशिश की थी, लेकिन उसमें कामयाबी नहीं मिली ये असंतुष्ट गतिविधियां उस समय हुई जब शेखावत इलाज करवाने विदेश गए हुए थे आते ही उन्होंने मोर्चा संभाल लिया और सरकार बच गई ।
लेखक : विमलेश शर्मा
      9928044008