संचारबंदी लगाना आसान या हटाना ?-डॉ. अरूण विजय

ठाणे ।  जैन मुनि डॉ. अरुण विजय ने कहा कि सरकार के लिए एक आदेश से संचारबंदी लगाना बहुत आसान था , उसमें भी करोड़ों भारतीय नागरिकों के प्रधानमंत्री के एक आदेश ने 135 करोड़ की जनता ने आदेश मान लिया और घरों में स्वैच्छिक जेल में बंद हो गए , हालांकि विश्व की सबसे बड़ी जनतंत्र लोकशाही वाले देश में इतना आसान नहीं था , उसमें भी बोलने की आजादी वाले देश में इतना आसान नहीं है , और पूरे देश और जनता जानती है कि विपक्ष किस प्रकार की कैसी भूमिका अपना रहा है , क्या विपक्ष की वैश्विक महामारी में कोई सकारात्मक भूमिका नहीं होनी चाहिए ?

क्या संविधान में ऐसा कोई कानून होना चाहिए ? या मानवता के प्रति कोई कानून जरूरी है ? प्रधानमंत्री का आदर देश के नागरिक करते हैं तथा उनकी बात शिरोधार्य करती हुई जनता स्वीकार की है , पालन करती है , ऐसी स्थिति में 135 करोड़ की जनता ने प्रधानमंत्री के लॉक डाउन का आदेश शिरोधार्य करके स्वेच्छा से घरों में बंद रहे हैं , यद्यपि जनता काफी परेशान जरूर है , फिर भी अभी तक भी प्रधानमंत्री मोदी के आदेश के विरुद्ध आंदोलन करने के लिए जनता सड़कों पर उतर नहीं आई है , एक तरफ प्रधानमंत्री का आदेश और दूसरी तरफ कोरोना मृत्यु-मौत का ही पर्यायवाची नाम बनता जा रहा है , मौत का डर सबको सताता है , इसलिए करे तो क्या करें ? सरकार ने जनता के प्राणों की रक्षा के लिए लोग डाउन का आदेश कर तो दिया तथा जनता ने मान भी लिया इस बात के लिए भारत की पूरी दुनिया में काफी प्रशंसा हो रही है ।

लेकिन अब लंबे चले लॉकडाउन के कारण अर्थव्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है , इसलिए सरकार भी लॉक डाउन खोलना चाहती है , जनता भी चाहती है कि खुले , बेरोजगारी भुखमरी आदि कई प्रश्न खड़े होते जा रहे हैं , लेकिन लोकडाउन हटाना सरकार के लिए भी इतना आसान तो नहीं है , राजस्व के लिए शराब की लाइनों के कारण गांधी के इस देश भारत की निंदा दुनिया में बहुत ज्यादा हो रही है एक एक चरण में जोन बनाकर कैसे खोलना यह बड़ी सावधानी का काम है 135 करोड़ जनता के योगक्षेम की चिंता वर्तमान सरकार तथा मोदी जी बहुत अच्छी तरह समझ रहे हैं, कर रहे हैं लॉकडाउन खोलना भी है तथा कोरोना फैले नहीं बढे नहीं, इसका संतुलन बनाकर व्यवस्था बनाते हुए खोलना लकड़ी टूटे नहीं और सांप मरे नहीं ऐसा खेल करना है  ।