सनातन संस्कृति में जीव जंतुओं के संरक्षण का प्रतीक नाग पंचमी पर्व :- अशोक विश्वकर्मा

वाराणसी |    नागपंचमी का पर्व प्रत्येक वर्ष सावन मास की शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि को मनाया जाता है इस बार यह पर्व 25 जुलाई शनिवार के दिन मनाया जा रहा है पुराणों में यक्ष किन्नर और गंधर्व के साथ – साथ नागों का भी वर्णन मिलता है मोहनजोदड़ो , हड़प्पा और सिंधु सभ्यता की खुदाई में नाग पूजा के अनेकों प्रमाण उपलब्ध है मिस्र देश में शेख हरेदी नाम से नाग पूजा बड़े पैमाने पर धूमधाम से की जाती है अनादि काल से ही नागों का अस्तित्व देवी देवताओं के साथ वर्णित है जैन और बौद्ध देवताओं के सिर पर भी नाग क्षत्र होता है असम , नागालैंड , मणिपुर , केरल और आंध्र प्रदेश में नाग जातियों का वर्चस्व रहा है पुराणों के अनुसार नागों का उद्गम महर्षि कश्यप और उनकी पत्नी कद्रू से माना जाता है नागों का मूल स्थान पाताल लोक है नागों का 8 कुल बताया गया है क्रमशः वासुकी , तक्षक , कुलक , कर्कोटक , पद्म , शंख , चूड़ , महापद्म और धनंजय है सनातन संस्कृति में अनेक प्रकार के जीव जंतुओं व पशुओं को पूजने की प्राचीन परंपरा रही है जिसमें नागों की पूजा का विशेष महत्व है भगवान शिव उन्हें आभूषण की तरह गले में धारण करते हैं पुराणों में नाग पंचमी मनाने के पीछे कई मान्यताएं प्रचलित हैं श्रावण शुक्ल पंचमी तिथि को समस्त नागवंश ब्रह्मा जी के पास अपने को श्राप से मुक्ति पाने के लिए गए थे ब्रह्मा जी ने नागों को श्राप से मुक्त किया था इस दिन नाग देवता की पूजा करने से उनकी कृपा मिलती है और सर्प से किसी भी प्रकार की हानि का भय नहीं रहता जिनकी कुंडली में काल सर्प दोष होता है उन्हें इस दिन किए गए पूजन से सर्प दोष से छुटकारा मिल जाता है यह दोष तब लगता है जब समस्त ग्रह राहु और केतु के बीच आ जाते हैं तब कालसर्प दोष लगता है ऐसे व्यक्ति को जीवन के हर क्षेत्र में सफलता के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है  |

इसके अलावा राहु – केतु की वजह से यदि जीवन में कोई कठिनाई आ रही है तो भी नाग पंचमी के दिन सांपों की पूजा करने का शास्त्रों में वर्णन है एक मान्यता के अनुसार नाग पंचमी त्यौहार की परंपरा तब शुरू हुई जब राजा जनमेजय के पिता परीक्षित को सर्पराज तक्षक ने डस कर उन्हें मार दिया था उनकी मृत्यु का बदला लेने के लिए राजा जनमेजय ने पूरे नागवंश को खत्म करने के लिए सर्पमेध यज्ञ का आयोजन किया अस्तिका ऋषि के हस्तक्षेप के कारण इस यज्ञ को रोकना पड़ा वह दिन पंचमी का था मुनि ने नागो के ऊपर दूध डालकर उनके शरीर को शीतलता प्रदान की थी नागों ने कहा था कि जो भी उनकी पूजा पंचमी तिथि पर करेगा उन्हे नागदंश का भय नहीं रहेगा तब से सावन की पंचमी तिथि पर नाग पूजा करने की परंपरा शुरू हुई एक अन्य मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन के लिए वासुकी नाग को रस्सी के रूप में प्रयोग किया गया देव गणों ने वासुकी के कहने पर उनकी पूंछ पकड़ी थी और दानवों ने मुंह इस प्रकार समुद्र मंथन से पहले हलाहल विष निकला जिसे भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण कर समस्त लोकों की रक्षा की इसके बाद अमृत निकला जिसे देवताओं ने पीकर अमरत्व को प्राप्त किया इस कारण से भी नागपंचमी का त्योहार मनाया जाता है एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने सावन मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को कालिया नाग का वध किया था और गोकुल वासियों की जान बचाई थी धर्मनगरी काशी में जैतपुरा नामक स्थान पर एक ऐसा कुआं विख्यात है जिसे पाताल लोक का दरवाजा बताया जाता है यह कुआ कार्कोटक नाग तीर्थ के नाम से भी प्रसिद्ध है स्कंद पुराण के अनुसार यह वह स्थान है जहां से पाताल लोक जाने का रास्ता है माना जाता है इस कूप के अंदर सात कूप है इसकी गहराई को आज तक कोई नहीं नाप सका है नागपंचमी के दिन कालसर्प दोष की शांति के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ लगती है इसी जगह पर महर्षि पतंजलि ने व्याकरणाचार्य पाणिनि के भाष्य की रचना की थी भारतीय संस्कृति में भगवत स्मरण के साथ पवित्र नागों का नाम स्मरण भी किया जाता है जिससे नाग विष और भय से रक्षा होती है तथा सर्वत्र विजय होती है   |