सृजनात्मकता का प्रतीक है विश्वकर्मा पूजा पर्व :- अशोक विश्वकर्मा

वाराणसी |      विश्वकर्मा पूजा का पर्व प्रत्येक सौर वर्ष में कन्या संक्रांति 17 सितंबर के दिन पूरे देश में बहुत ही उत्साह पूर्वक धूमधाम के साथ मनाया जाता है पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन सृजनकर्ता भगवान विश्वकर्मा ने संपूर्ण सृष्टि की रचना की थी इसलिए इसे सृष्टि रचना दिवस के रूप में भी जाना जाता है देशभर में विश्वकर्मा पूजा पर्व को सभी धर्म संप्रदाय और वर्ग के लोग जो निर्माण मशीनरी एवं तकनीकी इंजीनियरिंग आदि कार्य क्षेत्र से जुड़े हैं वह धार्मिक निष्ठा और आस्था के साथ वैदिक विधि विधान सहित हवन पूजन एवं विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों , गीत , संगीत भजन इत्यादि के द्वारा हर्षोल्लास के साथ मनाते हुए भगवान विश्वकर्मा में अपनी आस्था व्यक्त करते हैं भगवान विश्वकर्मा की महत्ता का उल्लेख वेद , पुराण , उपनिषद सहित अनेक शास्त्रों में विस्तृत रूप से मिलता है ऋग्वेद में विश्वकर्मा सूक्त के नाम से 11 ऋचाएं लिखी हुई है जिनके प्रत्येक मंत्र पर ऋषि विश्वकर्मा , भौवन देवता आदि उल्लेख है यह सूक्त यजुर्वेद अध्याय 17 सूक्त मंत्र 16 से 31 तक 16 मंत्रों में उल्लिखित हुआ है ऋग्वेद में विश्वकर्मा शब्द का उल्लेख एक बार इंद्र एवं सूर्य के विशेषण रूप में भी प्रयुक्त हुआ है परवर्ती वेदों में भी इसका अनेकों बार प्रयोग है और यह प्रजापति का विशेषण बनकर आया है प्रभास खंड के निम्न श्लोक की भांति किंचित पाठ भेद से सभी पुराणों में यह श्लोक मिलता है :- बृहस्पते भगिनी भुवनां ब्रह्मवादिनी | प्रभासस्य तस्य भार्या वसूनामष्टस्य च | विश्वकर्मा् सुतस्तस्य शिल्पकर्ता प्रजापतिः ll16ll अर्थात महर्षि अंगिरा के ज्येष्ठ पुत्र बृहस्पति की बहन भुवना जो ब्रम्हविद्या को जानने वाली थी वह अष्टम वसु महर्षि प्रभास की पत्नी बनी उससे संपूर्ण शिल्प विद्या के ज्ञाता प्रजापति विश्वकर्मा का जन्म हुआ पुराणों में बृहस्पति की बहन का नाम कहीं योग सिद्धा , वरस्त्री भी उल्लिखित है इस प्रकार विश्वकर्मा देवताओं के आचार्य संपूर्ण सिद्धियों के जनक प्रभाष ऋषि के पुत्र और महर्षि अंगिरा के ज्येष्ठ पुत्र के भांजा अर्थात अंगिरा के दौहित्र (दोहिता) है अंगिरा कुल से विश्वकर्मा का संबंध सभी विद्वान स्वीकार करते हैं इस प्रकार प्रभास पुत्र भुवना से उत्पन्न विश्वकर्मा को ही आदि या मूल विश्वकर्मा मानते हैं प्राचीन ग्रंथों के अनुशीलन से यह विदित होता है की जहां ब्रह्मा , विष्णु , महेश की वंदना अर्चना हुई है वहीं भगवान विश्वकर्मा का भी स्मरण परिवष्टन किया गया है अर्थात जिनकी सम्यक सृष्टि और रचना धर्मिता कर्म है वह विश्वकर्मा हैं वेदों में विश्वतः चक्षुरूत , विश्वतोमुखि , विश्वतोबाहुरूत , विश्वरूपात कहकर इन की सर्वव्यापकता सर्वज्ञता शक्ति संपन्नता और अनंतता का वर्णन किया गया है वेदानुसार यह स्पष्ट है कि प्रभास पुत्र विश्वकर्मा , भुवन पुत्र विश्वकर्मा तथा त्वष्टा पुत्र विश्वकर्मा आदि इस प्रकार अनेकों विश्वकर्मा हुए विश्वकर्मा कुल में मनु मय त्वष्टा शिल्पी दैवज्ञ और प्रत्येक से 25 / 25 ऋषियों की उत्पत्ति वाला विश्वकर्मा कुल सर्वाधिक व्यापक और श्रेष्ठ है मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा ने देवताओं के महल , स्वर्ग , इंद्रपुरी , यमपुरी , वरुणापुरी , कुबेरपुरी , पांडवपुरी , सुदामापुरी , शिवमंडलपुरी आदि के निर्माण के साथ ही महाभारत काल की द्वारिका , हस्तिनापुर सहित त्रेता युग में रावण की लंका का निर्माण करके अपनी अद्भुत वास्तुशिल्प को स्थापित करने के साथ ही दुष्टों के दमन तथा देवताओं की सुरक्षा के लिए भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र , शंकर का त्रिशूल , यमराज का काल दंड , इंद्र का वज्र आदि की रचना करके देवताओं को अक्षय और अजेय शक्ति से संपन्न किया उनकी संतत्तियों ने खेती के लिए कृषि उपकरण तथा राजा – महाराजाओं और सीमा प्रहरियों के लिए अचूक एवं शक्तिशाली अस्त्र – शस्त्रों , मशीनरी , कल कारखानों का निर्माण तथा नित – नए आविष्कारों द्वारा देश और समाज की सुरक्षा तथा आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान करते रहे हैं वैदिक काल की सामाजिक व्यवस्था में इनका महत्वपूर्ण एवं सर्वोपरि स्थान रहा है इनकी संतत्तियां जन्मना ब्रह्मत्व को धारण करने वाली ब्राह्मण होती हैं किंतु कालांतर में इनके गौरवशाली इतिहास धर्म शास्त्र और पुराणों को आक्रांताओं द्वारा नष्ट कर दिया गया समुचित संरक्षण के अभाव में अवशेष इतिहास विलुप्त होने लगा तथा इनके वंशज भी अध्ययन और अध्यापन से विमुख होते गए जिसके फलस्वरुप मौजूदा सामाजिक व्यवस्था में विश्वकर्मा वंशीय साधारण श्रमजीवी कारीगर मात्र हो कर रह गए हमारे भारतीय शिक्षा व्यवस्था के पाठ्यपुस्तकों में अनेक देवी – देवताओं , धर्म संस्थापकों , धर्माचार्यों संत और महापुरुषों तथा राजनेताओं की जीवनी कृतित्व तथा आदर्श चरित पठन पाठन में शामिल किया गया यथा श्री हरि विष्णु , कृष्ण , राम , रावण , परशुराम , महिषासुर मर्दिनि दुर्गा , बौद्ध , मोहम्मद साहब , ईशा मसीह , नानक देव , शंकराचार्य , तुलसीदास , कबीरदास , रविदास , रहीम , राणा लक्ष्मीबाई इत्यादि वहीं शिल्प विज्ञान के प्रवर्तक देवलोक से लोक कल्याण तक के लिए अभूतपूर्व योगदान करने वाले भगवान विश्वकर्मा के महात्म्य एवं जीवन चरित को शैक्षणिक पाठ्यक्रम में शामिल ना करके उनके इतिहास और अस्तित्व को मिटाने का षड्यंत्र किया गया भगवान विश्वकर्मा की संतत्तियां भेदभाव से परे सामाजिक समानता की अवधारणा से श्रम के सिद्धांत को प्रतिपादित करते हुए अपनी वंशानुगत कारीगरी व परंपरागत कला कौशल से देश और समाज के विकास में महत्वपूर्ण और अग्रणी योगदान करते आ रहे हैं विश्वकर्मा पूजा का पर्व जन कल्याणकारी तथा सृजनात्मकता का प्रतीक पर्व है इसलिए प्रत्येक प्राणी को सृष्टिकर्ता , शिल्प कलाधिपती , तकनीकी और विज्ञान के जनक भगवान विश्वकर्मा की पूजा निष्ठापूर्वक करनी चाहिए लोक कल्याण एवं सृजन के अधिष्ठाता भगवान विश्वकर्मा को कोटिशः सादर नमन जिन्होंने सृजन के आदर्श को प्रतिपादित किया    |