स्वतंत्रता की सच्ची सार्थकता सामाजिक समानता से ही संभव :- अशोक विश्वकर्मा

वाराणसी |      देश कोविड-19 महामारी के दौर में आजादी की 74 वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है भारत को बहुत बड़ी कुर्बानी के बाद 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली यह दिन भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण दिन है ऑल इंडिया यूनाइटेड विश्वकर्मा शिल्पकार महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक कुमार विश्वकर्मा ने आजादी के राष्ट्रीय पर्व पर देश को नमन करते हुए कहा कि आजादी की कीमत हमने शहीदों के खून और देशवासियों के बलिदान से चुकाई है़ अंग्रेजों से पहले भारत में मुगलों का शासन था और उन्होंने अपने राजनीतिक और आर्थिक लाभ के लिए हमारी धरती का उपयोग किया अंग्रेजों ने व्यापार के उद्देश्य से 1600 में प्रवेश किया तो मुगल सम्राट को भीअंदेशा नहीं था कि व्यापार के बहाने अंग्रेज उन्हें बेदखल कर देंगे व्यापार की आड़ में देश पर अधिकार जमाने की अंग्रेजों की रणनीति कामयाब हुई सदियों से अपने सांस्कृतिक विरासत , परंपरा , धर्म दर्शन और विज्ञान के कारण विश्व गुरु के रूप में स्थापित भारत भले ही सामाजिक भाषाई और धार्मिक आधार पर भिन्न नजर आता हो लेकिन यह कन्याकुमारी से कश्मीर तक एकता के सूत्र में बंधा हुआ है भारत से ज्यादा गौरवशाली इतिहास किसी भी देश का नहीं रहा लेकिन सांस्कृतिक , राजनीतिक , सामरिक और आर्थिक हमले इतिहास में शायद किसी देश पर इतने नहीं हुए किसी देश के इतिहास के साथ इतना अन्याय भी नहीं हुआ इस अन्याय और गुलामी से आजादी के लिए भारत वासियों को बहुत संघर्ष करना पड़ा और बड़ी कुर्बानी देनी पड़ी थी सदियों बाद ऐसा लगने लगा था , शोषक विदेशी सरकार चली गई अब लोग सुखी होंगे धन धान्य से संपन्न होंगे , बेकारी गरीबी हटेगी , विषमता और भेदभाव दूर होगा सामाजिक समानता होगी इस परिकल्पना से देश का आम आदमी खुशी से झूम उठा था किंतु ऐसा लगता है कि यह सब सपना था 15 अगस्त 1947 की वह खुशी लोगों के चेहरों पर अब दिखाई नहीं पड़ती लगता है राष्ट्रीय अवकाश से ज्यादा इस दिन का महत्व नहीं रह गया लोगों में वह लगन उत्साह दिखाई नहीं पड़ता है संसाधनों से धनी होने के बावजूद हम आज भी पिछड़े हुए हैं देश में अमीरों की तिजोरी भरती जा रही है और गरीबों की खाली होती जा रही है राजनेता और राजनीतिक पार्टियां देश को अपनी सहूलियत के अनुसार इस्तेमाल कर रहे हैं   |