स्वतंत्रता सेनानी रामदास लोहार को शहादत दिवस पर विश्वकर्मा महासभा ने दी श्रद्धांजलि

वाराणसी |     बिहार प्रदेश के पुराने शाहाबाद बक्सर जिला अंतर्गत डुमराव का स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास अंग्रेजो के खिलाफ संघर्षों से भरा अत्यंत गौरवशाली रहा है डुमराव की धरती पर महात्मा गांधी के आने के बाद स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बीच आजादी का आगाज हुआ था महात्मा गांधी के आवाहन पर सन 1942 में विदेशी वस्त्रों का बड़े पैमाने पर होलिका दहन करने के साथ ही अंग्रेजों की गुलामी से देश की आजादी के लिए देशभक्त नवयुवकों में बेचैनी बढ़ गई थी। जो आगे चलकर 16 अगस्त 1942 को डुमराव स्थित पुराना थाना पर भारी भीड़ के साथ तिरंगा झंडा फहराने के बाद आजादी के चार दीवानों ने थाना से कुछ दुरी पर अंग्रेजी हुकूमत के दरोगा देवनाथ के रिवाल्वर की गोली खाकर अपने प्राणों की आहुति दे दी थी, जिनमें अमर शहीद कपिल मुनि, रामदास लोहार, गोपाल जी प्रसाद एवं रामदास सुनार के नाम इतिहास के पन्नों में अमर रहेंगे। दुखद विडंबना है कि आजादी के इतने वर्षों बाद भी सरकार की उपेक्षा और भेदभाव के चलते इन शहीदों के स्मृतियों को जीवंत रखने की दिशा में आज तक कोई पहल नहीं हुई। ऑल इंडिया यूनाइटेड विश्वकर्मा शिल्पकार महासभा के तत्वावधान में शहीदों की स्मृति में आयोजित सभा में भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की गई। जिसमें प्रमुख रुप से श्रीकांत विश्वकर्मा डॉ प्रमोद कुमार विश्वकर्मा नंद लाल विश्वकर्मा सुरेश शर्मा एडवोकेट लोचन विश्वकर्मा रमेश विश्वकर्मा श्याम बिहारी विश्वकर्मा राजेश विश्वकर्मा अजय विश्वकर्मा आदि लोग थे।