भूगर्भ जल के संकट की ओर बढ़ रहा है शहर

आरओ प्लांट के पानी की शुद्धता भगवान भरोसे

*मनव्वर रिज़वी *

गोरखपुर । जल ही जीवन है यह स्लोगन शायद तब और भी सत्य लगने लगता है जब धूप की शिद्दत से सूख रहे गले को तर करने के लिए शीतल जल का पहला घूंट हम पीते हैं , प्यास लगने पर ही जीवन रूपी अमृत का मोल हमें समझ में आता है , आज देश के तमाम हिस्सों में पीने का पानी बड़ी मुश्किल से लोगों को उपलब्ध हो रहा है उसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि हम बेतहाशा जल स्रोत का दोहन कर रहे हैं जिसके कारण कहीं-कहीं पानी का जलस्तर इतने नीचे चला जाता है की वहां बोरिंग और नलकूप दम तोड़ देते हैं ।

शहरीकरण की दौड़ में हमारा शहर भी जब महानगरों की रेस में शामिल हुआ और जलजनित रोगों का खतरा बढ़ा तो अपनी सुविधा अनुसार लोगों ने घरों में फिल्टर लगाया और फिर बात महंगे आरओ सिस्टम तक पहुंच गई , पानी की जरूरत ने शुद्ध जल की उपलब्धता का व्यवसायीकरण कर दिया और धीरे धीरे आरओ प्लांट का डब्बा बंद पानी दुकानों और मकानों में लोग इस्तेमाल करने लगे ।

कम पूंजी की लागत के साथ न कोई रजिस्ट्रेशन न कोई टैक्स और न ही कोई कागज़ी कार्यवाही होने से इस व्यापार ने लोगों को इतना आकर्षित किया कि लगभग हर गली मोहल्ले में आरो प्लांट लगाना शुरू हुआ और स्थानीय स्तर पर डिब्बाबंद पानी लोगों तक पहुंचने लगा , आज शहर से लेकर गांवों तक डिब्बाबन्द पानी का क्रेज़ इतना बढ़ गया है की अनगिनत आरओ प्लांट दिन रात चल रहे हैं  ।

पानी के इस मुनाफे वाले व्यवसाय ने ठंडा और स्वच्छ जल प्रतिस्पर्धी दरों पर उपलब्ध जरूर कराया लेकिन इसका असर तेजी से शहर के जल स्तर पर दिखाई देने लगा , शहर के घनी आबादी में लगे एक प्लांट मालिक ने बताया कि 500 लीटर शुद्ध जल प्राप्त करने के लिए लगभग 1500 से 2000 लीटर पानी पम्प कर ज़मीन से निकालना पड़ता है , शुद जल को तो बड़े बड़े टैंकों में रिज़र्व कर लिया जाता है लेकिन बचे हुए लगभग 1000 से 1500 लीटर जल को नालियों के रास्ते नालों में बहा दिया जाता है  ।

एक अनुमान के मुताबिक सिर्फ शहर में ही हर रोज़ लाखों लीटर पानी जमीन से निकाल कर नालियों में बहा दिया जाता है , शहर में कितने प्लांट लगे हैं इसकी जानकारी न तो प्रशासन को है और न ही इसके लिए किसी खास विभाग का गठन किया गया है जबकि पाउच और बोतल बन्द पानी के लिए कुछ हद तक खाद्यय एवं औषधि विभाग को जिम्मेदार बनाया गया है  ।

बहरहाल डिब्बाबंद पानी के लिए कुकुरमुत्तों की तरह जगह-जगह लगे इन आरओ प्लांट का पानी कितना शुद्ध है यह कोई नही जानता लेकिन इन प्लांटों द्वारा बिना किसी रोक टोक के किए जा रहे भूगर्भ जल के दोहन से आने वाले समय में जलस्तर में गिरावट आना तय है और तब स्थिति सम्भालना बहुत मुश्किल होगा।