कोटेदारों द्वारा चावल चोरी की खबरों से हिस्सेदारों में हड़कम्प

*राशन चोरी की खबर से विचलित हुए कुछ तथाकथित पत्रकार*

गोरखपुर। वर्तमान समय में लॉक डाउन की स्थिति चल रही है पहले जनता कर्फ्यू और उसके बाद लॉक डाउन से लोगों के सामने रोज़ी रोज़गार का संकट मुँह बाय खड़ा है , तमाम सरकारी और गैरसरकारी संस्थाएं लोगों तक राहत सामग्री पहुंचा रही हैं , लेकिन इस एक माह में सबसे बुरी स्थिति उन परिवारों की है जो गरीबी रेखा से तो ऊपर हैं लेकिन अब उनकी रसोई में अनाज खत्म हो गया है , यह ऐसे परिवार हैं जो किसी से कुछ मांग भी नही सकते , ऐसे परिवारों के लिए सरकार द्वारा घोषित मुफ्त चावल वितरण किसी वरदान से कम नही है ।
लेकिन सरकारी राशन की दुकानों से प्रति यूनिट 5 किलो मिलने वाले इस चावल पर एक गिरोह डकैती डालकर न सिर्फ सरकारी मंशा पर कुठाराघात कर रहा है बल्कि वैश्विक महामारी के इस दौर में इंसानियत की हत्या करने के साथ राजद्रोह जैसा कृत्य कर रहा है ,
आज के समय में जब हर देश प्रेमी जिसके पास थोड़ी भी क्षमता है वह किसी ना किसी तरह किसी भूखे को भोजन कराने की फिराक में है ।

ऐसे में गरीबों बेसहारा और कमजोर वर्ग की थाली से चावल चुराने वाले कोटेदारों द्वारा चावल चोरी की खबरें कोटेदारों के उन साथियों को नागवार गुज़र रही हैं जिनका बरसों से सरकारी राशन से लेकर नरेगा समेत सरकारी कार्यों में हिस्सेदारी होती है , इनमें से तमाम ऐसे भी हैं जो बरसों से पत्रकारिता कर रहे हैं और ऐसी ही दलाली पर आश्रित हैं ।

यह अपने सम्मनित अखबार को धोखा देने के साथ आम जनता से लगातार विश्वासघात कर जनता के अधिकारों पर डाका डालने का काम कर रहे हैं ,
कोई भी अखबार या चैनल समाज का आईना होता है और इसी आईने में समाज अपना प्रतिबिम्ब देखता है इसलिए हर अखबार या चैनल की ज़िम्मेदारी है कि वह समाज को सच से रूबरू कराये और जनता के अधिकारों को लूटने वाले चेहरों को बेनकाब करे और यह तभी मुमकिन है जब उस अखबार या चैनल के स्थानीय संवाददाता ईमानदारी से अपना काम करेंगे। लेकिन जब स्थानीय स्तर पर सही और तथ्यों पर आधारित खबरें बड़े अखबारों में जगह पाने से वंचित हो जाएं तो कहीं न कहीं उन बड़े पत्रकारों के माथे पर बल पड़ना स्वभाविक है जो अपने संस्थान को अंधेरे में रख कर कोटेदारो और प्रधानों की दलाली का काम करते हैं , अब यदि ऐसे लोग किसी समाचार पर अपनी त्वरित प्रतिक्रिया देनें के लिए कलम उठाते है तो उनसे क्या उम्मीद की जाए  ।