डॉ. शर्मा बने इंसानियत की मिसाल 

गुवाहाटी |     एलिफेंट डॉक्टर के नाम से मशहूर 59 साल के डॉ. कुशल कोंवर शर्मा जब हाथियों के बारे में बात करते है तो उनके चेहरे पर खुशी और जोश दोनों दिखने लगते है और डॉ. शर्मा 35 साल हाथियों की देखभाल और इलाज में गुजार चुके है और उन्होंने असम की बाढ़ से लेकर इंडोनेशिया के जंगल तक हजारों हाथियों की जान बचाई है , डॉ. शर्मा का कहना है कि बाढ़ के दौरान काजीरंगा नेशनल पार्क मे कई बार तो हाथी तक बह जाते हैं बच्चे मां से बिछड़ जाते है ऐसे हालात में उनको देखभाल की जरूरत होती है इसलिए मैं बाढ़ के समय उनकी मदद करने वहां मौजूद रहता हूं डॉ. शर्मा का कहना है कि हाथी काफी बुद्धिमान होते हैं बाढ़ आने का अनुमान इन्हें छह – सात दिन पहले ही हो जाता है इसलिए ज्यादातर हाथी काजीरंगा से निकल कर ऊंची पहाड़ी की तरफ चले जाते है और आपको बता दे कि कुछ साल पहले तक बाढ़ से पहले काजीरंगा के लगभग सारे हाथी नगालैंड होते हुए म्यांमार चले जाते थे और वापसी के दौरान उनका शिकार हो जाता था अब हाथियों ने इस बात को समझ लिया है और बाढ़ के दौरान काजीरंगा नहीं छोड़ते हैं एवं डॉ. शर्मा पूर्वोत्तर राज्यों के घने जंगलों में हाथियों का इलाज करने के लिए तीन लाख किमी दूरी तय कर चुके है डॉ.शर्मा अपनी जान 20 से अधिक बार जोखिम में डाल चुके है बता दे कि डॉ. शर्मा 5 सालों से बिना कोई साप्तहिक छुट्टी लिए 10,000 हाथियों का इलाज कर चुके हैं    |
डॉ. शर्मा यह भी कहते है कि कि मै हाथियों की एक्टिविटी से उनकी भाषा समझ लेता हूं उनसे संकेत में बात करता हूं यहां के अधिकतर हाथी मुझे पहचानते है , डॉ.शर्मा को हाथियों से प्रेम बचपन से हैं उन दिनों को याद करते हुए वह कहते है कि हमारे घर में उस दौरान लखी नाम की एक मादा हाथी हुआ करती थी और मेरा अधिकतर समय उसके आसपास खेलने में गुजरा था वहीं से मेरे मन में हाथियों के लिए प्यार की शुरुआत हुई है आपको बता दे कि डॉ.शर्मा ने नेपाल , श्रीलंका और इंडोनेशिया के सैकड़ों हाथियों का इलाज किया है वे बताते है कि इंडोनेशिया में नब्बे के दशक के बाद हाथियों को जंगलों से पकड़कर एलिफेंट ट्रेनिंग कैंप में रखा जाता है वहां कई हाथी मर रहे थेे इसलिए उन लोगों ने मुझे बुलाया आज भी वहां हाथियों की देखरेख मेरे बनाए कैप्टिव एलीफैंट मैनेजमेंट एंड हैल्थकेयर प्लान से हो रही है     |