नवरात्रि के पावन पर्व पर संगीत साहित्य मंच के तत्वावधान में हुआ ठाणे में कवि गोष्ठी

ठाणे | साहित्य की सफर में मशहूर संस्था संगीत साहित्य मंच के तत्वावधान में मुन्ना विष्ट कार्यालय  सिडको ठाणे में नवरात्रि की पावन पवित्र शुभ घड़ी व राम नवमी के शुभ अवसर पर कवियों की महफ़िल सजी और गोष्ठी काबिले तारीफ़ रही  उक्त गोष्ठी की अध्यक्षता आकाशवाणी की उद्घोषिका एवं कवियत्री आर जे आरती साइया हिरांशी ने की एवं अंत में सभी कवियों की रचनाओं पर समीक्षा भी सुन्दर दी ।
मुख्य अतिथि के रूप में कवियत्री श्रीमती आभा दवे जी उपस्थित थी एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में  वरिष्ठ कवियत्री शिल्पा सोनटक्के   विद्यमान थी मंच संचालन बांद्रा कोर्ट के नोटरी व एडवोकेट कविवर अनिल शर्मा जी ने बखूबी निभाया और सफलता पूर्वक संचालन करते हुए लोगों के दिलों में जगह भी बनाई संयोजक राधाकृष्ण मोलासी जी ने एडवोकेट अनिल शर्मा को नोटरी बनने पर शाल,श्रीफल,प्रशस्ति पत्र, लेखनी एवं पुष्पगुच्छ देकर सम्मानित भी किया ।
उक्त गोष्ठी में साहित्य सेवियों में वरिष्ठ कवि टी आर खुराना,भुवनेन्द्र सिंह विष्ट,राम प्यारे सिंह रघुवंशी,एन बी सिंह नादान,ओमप्रकाश सिंह, राधाकृष्ण मोलासी,विनय शर्मा दीप,अनिल कुमार राही,डाँक्टर वफ़ा सुल्तानपुरी,नज़र हयातपुरी, अश्विनी कुमार यादव,त्रिलोचन सिंह अरोरा,कुलदीप सिंह दीप, राजीव कुमार मिश्रा,लालबहादुर यादव कमल,अनीश कुरैशी, इरफान हुनर,कल्पेश यादव आदि उपस्थित थे।जिनकी रचनाएँ तालियों की गड़गड़ाहट को रोकने में स्मर्थ रही क्रमशः देखिये ।
 कविवर अनिल कुमार राही ने बहुत सुन्दर रचना सुनाकर लोगों के दिलों में जगह बनाई
भाव  मन  में  लिए उर मिलन कीजिए।
साफ़  मन   प्रेम  से  आचमन कीजिए।।
मंत्र    ऐसे   पढो   आत्मा   भी  सुने।
कर समर्पण  सदा  ही  नमन कीजिए।।
है क़दम  दर  क़दम  ज़िंदगी  तोलती।
पाक  दामन  रहे  उर  जतन कीजिए।।
देह   की  उर्मियाँ   बस  पुकारें   तुम्हें।
सासं के पथ से अब आगमन कीजिए।।
वो कथन  प्राकथन  आवरण  दो हटा।
सत्य  है   प्रेम    तो  आचरण कीजिए।।
भाव  शवरी  सा  हो  प्रेम मीरा सा हो।
है सरल  व्याकरण अनुकरण कीजिए।।
जिसने  पैदा   किया  भूलना मत उसे।
वक़्त ‘राही’  मिले  तो भजन कीजिए।।
 रामनवमी के शुभ अवसर पर अपनी विधा हायकू सुनाते हुए कवियत्री श्रीमती आभा दवे जी ने क्या खूब कहा-
1) निर्मल मन
   पतित पावन है
  श्रीरामचन्द्र ।
2) प्रीत निभाई
 माँ के वचन सुन
  गए वन को ।
3) हे दशरथ
धन्य भाग्य तुम्हारे
बेटा श्रीराम ।
4) सीता खातिर
  मृग पीछे दौड़े वो
   प्रेम से हारे ।
5) अहिल्या तारी
  दिया जीवन नया
  किया सम्मान ।
6)शबरी बेर
  सब प्रेम से खाए
  रखा था मान ।
7) रावण मारा
   किया न अभिमान
    ज्ञान महान ।
8) हनुमान के
    हृदय में बसते
    प्रीत जगाते ।
9)वो भ्रातप्रेम
   अदभुत तेरा ही
    तुझे प्रणाम ।
10) विराजमान
    सीता संग लक्ष्मण
    सम्पूर्ण राम ।
 सम्मानमूर्ति कविवर,एडवोकेट अनिल शर्मा जी ने अपनी रचना में एक अलग छवि छोडी-
जाओ…
पहुँचकर कुशल क्षेम कहना
बच्चों का और मेरा खयाल करना
प्रतिदिन खाना समय से खाना
अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देना
समय से उठ जाना
खाना समय से बनाना
खाना खा लेना
और लेकर भी जाना
नाथ एक बात कहूँ
समय मत खोना
सारे कपड़े एक दिन
रविवार को ही धोना
एक बात और….
जब कोई सुंदरी
आपको रिझाने लगे
धीरे धीरे करके
निकट आने लगे
चालें चलने लगे
डोरे डालने लगे
तो सिर्फ इतना करना
मेरा रोया चेहरा याद करना
मेरे द्वारा सिर पर तेल रखकर
सिर सहलाना याद करना
बच्चों के फटे
कपड़े याद करना
शुल्क के लिए स्कूल में
बच्चों का डांट याद करना
त्योहारों पर पड़ोसियों के घर खीर पूड़ी
अपने घर की चटनी रोटी याद करना
तो वो सुंदरी राक्षसी दिखेगी
दिल में मेरी ही सूरत बसेगी
खूब कमाना
खुश रहना
एक घर बनाना
फिर हमें बुलाना
ना खुद रोना
ना मुझको रुलाना
प्राणनाथ! परदेश गमन में
मुड़कर नहीं देखते
गमन प्रयोजनार्थ
सदा सोचते
माना कि देखने का मन
खूब होता है
पर सुना है मुड़कर देखना
अशुभ होता है
इसलिए हे स्वामी
अपने नैतिक पथ पर जाओ
यहां मैं सँभाल लूंगी
वहां आप खुद का राह बनाओ ।।
 गज़लकार, गीतकार नज़र हयातपुरी जी ने एक अलग संमा बांध दी अपने गीत और गज़ल के माध्यम से-
जल्दी है उड़ने की ज़मीं को छोड़ जाएगा।
परिंदा गुलशनो गुल और मकीं को छोड़ जाएगा।।
दयारे गैर में होगा ना हासिल कुछ उस कहदो ।
वो क्या पाएगा जाकर जब हमीं को  छोड़ जाएगा।।
हैं जो वही लालोगोहर जानते है।और वो हस्बो नसब पेड़ो समर जानते हैं।।
लोग पटरी पे भी अब नाव भगा लेते हैं।
रेल पानी में चलाने का हूनर जानते हैं।।
 वरिष्ठ कवि रचनाकार त्रिलोचन सिंह अरोरा जी ने तो कविता को ही अपनी जिंदगी बनाते हुए कहते हैं-
जी हां “कविता” मेरी ज़िन्दगी में शामिल है
मस्त गगन में….. धरा के  चमन में
सुबह की किरण में….. निशा के नूर में
सब्ज़ खेत की हरियाली में,
 प्रकाशमय दीवाली में… सप्तरंगी होली में,
नदी की धार में उछल उछल उतरती कविता
लहरों संग आंख मिचौली खेलती “मेरी कविता”
बादल के आंचल से लिपटती,
बिजली की पायल में थिरकती,
प्यार की खुशबू में ….. हवा के हुस्न में
समय की रग रग में ‘तैर रही कविता’
सुर ताल और राग में ‘रागिनी कविता’
दिल की थाप पे अपनेआप धड़क रही कविता.
मेरी यादों में कविता… मेरे इरादों में कविता
मेरे सपनों में कविता …मेरी हकीक़त में कविता
और तो और “कविता” प्रियतमा की अंगड़ाई भी है …….
और ठण्ड में ओढ़ने को, ‘रजाई’ भी है……
‘दिल के जज़्बात’ ही  तो है कविता
हां, ‘नैनों की बरसात’ भी  है कविता
चाँदनी रैना में ….दिल के चैना में,
कोयल की कूक में और नानी के “दाजवाले” (दहेज ) पुराने संदूक में संकलित है कविता.
 कहाँ नहीं है कविता ? हर सांस में प्रवाहित है  कविता, और तो और प्रकृति के परिवर्तित  स्वभाव में…और मनुष्य के अभाव में भी तो है कविता …
सुख में, दुःख में, मुनाफे में, घाटे  में,
हर मिजाज़ में पनपती है  कविता …
दृष्टि से कभी ओझल नहीं  हुई कविता
दर्पण में, जब जब मैं ‘संवरू’
मुझसे पहले ‘सजती’ है  “मेरी कविता”
साँझसवेरे, मुझसे जीभर बतियाती है कविता जाने क्या क्या कह सुनती है कविता
कविता कल भी थी…आज भी है कविता
मेरे अंग अंग में, मेरे हर रंग में,
मेरे संग संग विचरती है। कविता मेरा हमसफ़र / मेरा साथी  है  ” मेरी कविता “
 निःसंदेह,  मेरी “थाती” है  “मेरी कविता ” ।।
 वरिष्ठ कवि आर पी रघुवंशी जी ने बसंत ॠतु पर बहुत सुन्दर चित्रण करते हुए कहा-
 देखो कैसा मौसम आया,
सूरज ने गर्मी छिटकाया,
अब पेड़ों में दिखी कोपलें,
ठण्डी से राहत ले आया।
हरियाली का तना वितान,
धरती का बदला परिधान,
हरी चुनरिया ओढ़ के आयी,
जैसे गाती मंगल गान।
बिहंस रहे हैं बाग-बगीचे,
जीव-जंतु भर रहे कुलाँचें,
मधुर-मधुर बजती शहनाई,
भोर में पंडित पोथी बाँचे।
नये वर्ष का हुआ आगमन,
संध्या देवी नाचे छम-छम,
अब वसंत है आने वाला,
ऋतुओं का राजा मतवाला।
आसमान में उड़ी पतंगें..
जूझ रही हैं इक दूजे से,
ऊपर-नीचे,नीचे-ऊपर,
जंग छिड़ी है आसमान में।
सब जन मिलकर खुशी मनायें,
इक-दूजे से मिल मुस्काएँ,
हिंदू, मुस्लिम, सिख,इसाई,
पोंगल और लाहड़ी मनाई।
संक्रांति की छटा निराली,
तिल-गुड़ से बगिया मुस्काई,
प्यार बाँटना धर्म हमारा,
यही है हिंन्दुस्तान हमारा।
 एडवोकेट राजीव मिश्रा अभिराज जी भगवान श्री राम का गुणगान  करते हुए कहते हैं कि-
कौसल्यासुत  रघुकुलनन्दन
हे असुरनिकन्दन रघुनायक
हे अवधपति  करुनानिधान
हे  राम   तुम्हारी  जय  होवे।
दशग्रीवशिरोहर   खरध्वंशी
राजीवनयन  घटघट  वासी
मर्यादा   पुरुषोत्तम   उदार
हे  राम  तुम्हारी  जय  होवे।।
कवियत्री आर जे आरती साइया हिरांशी ने तो गुजराती रचना सुनाकर लोगों को आह्लादित कर दिया-
श्रीचरण ऐना पखाणी राखजो
रामनी लीला  टकावी राखजो
आवशे ऐ चौद वरसे आवशे
आरती दीवो जलावी राखजो
छाब श्वासो के पुष्पोनी पाथरो
प्यास आँखोंनी बिछावी राखजो
पोंखवाना  रे  हता अरमान तो
पोंखवा थाळी सजावी राखजो
ओसरीनो एक खूणो धख धखे
ऐ धूणी धख धख धखावी राखजो।।
 सवैया के कवि विनय शर्मा “दीप” जी ने अवधी भाषा में वसंत ऋतु पर मतगयंद सवैया सुनाकर  लोगों को रसविभोर कर दिया-
हे ॠतुराज बसंत तहार अपार कला मन ही मन भावै ।
झील सरोवर खेत सिवान किसान सुजान सबै गुण गावैं ।
पेड़न में नवपात लगै तितली संग मोरहिं रंग जमावैं ।
कोयल औ पपिहा सुगना संग बालक भी मिरदंग बजावै ।।
वर्तमान साहित्य सेवा के क्षेत्र में उभरते हुए गीतों के राजकुमार कवि अश्विनी कुमार यादव कहते हैं-
संविधान के सीने पर चोट मत करना।
नोट लेके भाई-बहनों वोट मत करना।
बाबा साहेब ने तुम्हे दिया अधिकार है।
वोट ना तुम्हारी सुरक्षा का हथियार है।
जरा सा भी संसय मन में खोट मत करना।
नोट लेके भाई -बहनों वोट मत करना।।
इसी क्रम में उपस्थित सभी कवियों ने भी अपनी रचनाओं से आनंदित कर दिया और अंत में वरिष्ठ कवि आर पी सिंह रघुवंशी जी ने उपस्थित सभी साहित्यकारों को उपस्थित होकर अमूल्य समय प्रदान करने हेतु धन्यवाद दिया और आभार व्यक्त करते हुए गोष्ठी का समापन किया ।