भारती श्रीवास्तव की अनोखी रचना :- पगला

पगला
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सामान्य दिनों में
मेरे घर के नजदीक
भाजीवाले के पास
एक पगला आया करता था
अधेड़ उम्र
उम्र भी शायद अधेड़ न हो
पर पागलपन के कारण
अंदाजा लगाना भी मुश्किल था
या तो वो समय से
आगे चल रहा था या पीछे
एक कॉपी और पेन लेकर
फुटपाथ पर अधलेटा
बहुत सुंदर अक्षरों में
कुछ लिखता रहता
एकाध बार मैं भी
उसकी कॉपी में डरते डरते
झांक आई थी
एकाध कलम लिखने के लिए
मैंने भी पकड़ाई थी
उसकी कहानी
भाजी वाले ने बताई थी
वो एक अच्छे घर का
पढ़ा लिखा बड़ा लड़का था
ज्यादा पढ़ लिख गया
इसलिए दिमाग इसका घूम गया
यही उसके घरवाले बताते हैं
पर उसको घर में पकड़ नहीं रख पाते हैं
पूरे दिन वहीं बैठ पढ़ता लिखता
न किसी से कुछ बोलता
न किसी को लखता
कोई कुछ दे तो खा पी लेता
न चीखता न चिल्लाता
न बाल नोंचता
पर अपने घर में रहने से वो डरता था
रोज शाम को छोटा भाई
लिवा ले जाता था
नहलाता धुलाता
साफ कपड़े पहनाता था
खिला पिला कर सुलाता था
पर अगली सुबह वह फिर
फुटपाथ पर चला आता था
भाजी वाला बोरी बिछाता
वो उस पर पढ़ने बैठ जाता था
लॉक डाउन कर्फ्यू में वो दिखाई नहीं दिया
पता नहीं उसके घरवालों ने
उसे कैसे रोक लिया
यदि वो घर में रुक पाता
तो पहले ही पगला नहीं कहाता

भारती श्रीवास्तव
गोरेगांव, मुंबई
27/03/2020