व्यापारी अपना माल बेचने के लिए देश-विदेश सफर करते थे : जैन मुनि विश्वानंद विजय 

ठाणे | जैन मुनि विश्वानंद विजय चातुर्मास के दौरान भक्तों को बताया कि भारत के अपने गांव में रहना ये बात समझने के लिए मैं कुछ लिख रहा पहले के जमाने में राजशाही युग था व्यापारी अपना माल बेचने के लिए देश विदेश में सफर करते थे अपने देश में बड़े शहरों में माल बेचने जाते थे बेचकर अपने गांव में वापस आ जाते थे यह सिलसिला अनादि कालीन है पिछले समय में अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी आई अपने भारत देश में व्यापार करने लेकिन अपने वतन का रिश्ता छोड़ नही दिया था , गुजरात राजस्थान आदि के व्यापारी मुंबई जैसे शहरों में आने लगे आबादी बढ़ती गई मुंबई में बस गए इसी तरह आबादी बढ़ती गई भारत देश में अन्य शहर कलकत्ता , मद्रास , बैंगलोर , अहमदाबाद शहर में व्यापार के नाते उसी शहर में बस गए गांव से नाता कम हो गया समय बदल गया शहर के आस – पास कंपनी फैक्ट्री कारखाना उद्योग बढ़ने लगे गावों के युवा जान शहर में आकर काम करने लगे रोजगारी मिलने लगी भारत के गावों में से युवावर्ग गायब होने लगा आज के समय नहिवत है गांव उजड़ने जैसे होने शिक्षण लेने से शिक्षित को गांव में रहना पसंद नहीं आता वह शहर की ओर चल पड़े लेकिन शहर में बस्ती बढ़ती चली आज ये बात सबकी नजर समझ है बस्ती बढ़ने से बहुत समस्या हो गई जिनको अच्छी नौकरी व्यवसाय है सरकारी नौकरी है कोई पोस्ट पर है सी.ए. , वकील , डॉक्टर , इंजीनियर आदि उनको तो शहर में खास तकलीफ नहीं है  |

आमदनी की वजह से किन्तु जो कर्मचारी कि आमदनी काम है रहने की जगह नहीं सगा संबंधि कोई अपना नही उनको सारे तकलीफ नहीं है कहा रहना सारी समस्या है , काम मिलता है पगार पैसा सब मिलता है लेकिन मालिक रहने की सुविधा नहीं कर पाते नही देते , नौकरियां, फेरीवाले, कलाकारीगर वाले ऐसे बहुत से शहर में आकर अपने रहने का ठिकाना नही पाते हैं अगर छोटी-मोटी जगह लेते हैं , आधा पगार भाड़े पे चला जाता है , वतन में परिवार के खर्च के लिए जरूरी पैसा दे नही पाते ऐसी बहुत आते हैं जिसमें परेशानी के शिवा कुछ नहीं है , इसलिए हम बरसो से बता रहे हैं आधी रोटी खाना अपने गांव में रहना नौकरी मिलती है , लेकिन रहने का घर नही शहर के खर्च जितनी आमदनी पगार नही है उनको मुंबई जैसे शहर में आना नही चाहिए गांव में रहकर जीवन का मजा लेना चाहिए में माता पिता परिवार सगा संबंधी रिश्ते वगेरे के साथ रहना जरूरी है , अपने आपको कंट्रोल में रख सके शहर में कहने वाला कोई नहीं रहता बुरी आदत लग गई तो रोकने वाला कोई नहीं बीमारी आई तो संभालने वाला कोई नहीं गांव में घर वाले ओर गांव वाले कि नजर के सामने रहते हुए जीवन में दोष नही आते खेती-बाड़ी पशु-पालन छोटा-मोटा काम मिल जाता है , शहर की जैसी चमक दमक वंश नही है लेकिन आरोग्य की सलामती मन में शांति आदि बहुत सुख है मुंबई जैसे शहर की महंगाई गांव में नही है , इसलिए गांव में रहने का मन बना लो ।