“मारो फिरंगी को” नारा देने वाले स्वाधीनता के अग्रदूत थे मंगल पाण्डेय : अशोक विश्वकर्मा

वाराणसी |   मंगल पांडे बहादुर व निर्भीक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने 1857 में भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई , इनका जन्म 19 जुलाई 1827 को संयुक्त प्रांत उत्तर प्रदेश में जनपद बलिया के नगवा गांव में साधारण भूमिहार ब्राह्मण परिवार में हुआ था , इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे तथा माता का नाम श्रीमती अभय रानी था , उन्हें युवावस्था में रोजी रोटी की मजबूरी के चलते फिरंगीयो की फौज में नौकरी करने को मजबूर होना पड़ा , वह 22 वर्ष की उम्र में ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल इंफेन्ट्री की पैदल सेना में सिपाही थे , ईस्ट इंडिया कंपनी की स्वार्थी नीतियों के कारण मंगल पांडे के मन में अंग्रेजी हुकूमत के प्रति नफरत और घृणा पैदा हो गई , बंगाल इकाई की सेना में एनफील्ड 53 राइफल में नई कारतूसो का इस्तेमाल शुरू हुआ , इन्हें बंदूक में प्रयोग करने से पहले मुंह से खोलना पड़ता था , इस विषय को लेकर सेना में यह खबर फैल गई कि इन कारतूसो को बनाने में गाय तथा सूअर की चर्बी का प्रयोग किया गया है जो हिंदू और मुसलमान दोनों संप्रदाय के लिए गंभीर धार्मिक विषय था , इस घटना ने सैनिकों के मन में अंग्रेजी सेना के विरुद्ध आक्रोश पैदा कर दिया 9 फरवरी अट्ठारह सौ सत्तावन को जब यह कारतूस पैदल सेना में बांटा गया तब मंगल पांडे ने इसके खिलाफ बगावत कर दिया , उन्होंने “मारो फिरंगी को “नारा दिया जो भारत की स्वाधीनता के लिए सर्वप्रथम आवाज उठाने वाले क्रांतिकारी मंगल पांडे की जुबान से निकला था |

इस घटना से गुस्साए अंग्रेज अफसरों ने मंगल पांडे का हथियार छीन कर वर्दी उतारने का आदेश दिया , जिसे मंगल पांडे ने मानने से इनकार करते हुए परेड ग्राउंड में राइफल छीनने के लिए आगे बढ़ने वाले अंग्रेज अफसर मेजर हयूटसन पर आक्रमण कर दिया और उसे मौत के घाट उतार दिया , उनके रास्ते में आए एक और अंग्रेज अधिकारी लेफ्टिनेंट बाँब को भी उन्होंने मौत के घाट उतार दिया और फिर खुद को गोली मारकर घायल कर लिया , इस घटना के बाद उन्हें अंग्रेज सिपाहियों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर कोर्ट मार्शल द्वारा मुकदमा चलाकर 6 अप्रैल 1857 को फांसी की सजा सुना दी गई , इस प्रकार 29 मार्च 1857 को अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बज गया मंगल पांडे की शहादत आगे चलकर क्रांति का प्रतीक बन गई , शासन ने उन्हें बागी करार दिया जबकि आम हिंदुस्तानी उन्हें आजादी की लड़ाई के नायक के रूप में सम्मान देता है भारत के स्वाधीनता संग्राम में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को लेकर भारत सरकार द्वारा उनके सम्मान में सन् 1984 में एक डाक टिकट जारी किया गया  |