आई दिवाली नाच उठा कुम्हारों का चाक 

गोला , गोरखपुर / जोखन प्रसाद |     भारत का सबसे प्रमुख त्यौहार दीवाली है जिसे प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है इस पर्व में मिट्टी के दीये का काफी महत्व होता है इसलिए दीवाली आते हैं इसकी मांग काफी बढ़ जाती है यूं तो ग्रामीण अंचल में दिये की खपत अधिक होती है लेकिन शहरों में भी इसका महत्व बना हुआ है चूंकि शहर हो या देहात लोगों के घरों मे कम से कम पांच मिट्टी के दिये अवश्य ही जलाये जाते है दिये की मांग पर कुम्हारों का चाक भी अपनी सबाब पर आकर नाच उठा है दिन – रात कड़ी मेहनत कर कुम्हार दिये तैयार कर घरों बाजारों तक पहुंचाने का कार्य कर रहें हैं दिवाली का इंतजार आम जनों के साथ कुम्हारों को भी बड़ी बेसब्री से होता है रोजीरोटी की तलाश मे बाहर रहकर मजदूरी कर रहे कुम्हार भी अपने घरों पर लौटकर दिये तैयार कर रहें है क्षेत्र के देवकली गांव के हरिलाल प्रजापति गोपालपुर के किशोरी , बांकेलाल , नेबूलाल , रमेश , अशोक आदि का कहना है कि हमारा यह कार्य पूर्वजी है दिवाली के दिनो तक तो ठीक ठाक इनकम हो जाती है लेकिन बाकी के दिनों मे बाहर जाकर मजदूरी करके ही जिविका चलाना पड़ता है अगर सरकार हमारी विरासत को बचाने मे सहयोग करे तो काफी अच्छा होगा , प्राचीन समय से लोग दिवाली मे अपने घरों को मिट्टी के दिये जलाकर सजाते रहें है लेकिन अब ज्यादातर लोग विदेशी झालरों को लटकाकर घरों को सजा रहें है जिससे मिट्टी के दिये को काफी चुनौती मिल रही है हालांकि मिट्टी के दिये जलाने से वर्तमान समय मे वातावरण मे मौजूद किटाणु – जीवाणु नष्ट हो जाते हैं जबकि झालरों से कीट पतंगों आदि आकर्षित होतें है     |