आजादी के महानायक चंद्रशेखर आजाद : अशोक विश्वकर्मा

वाराणसी । ” मैं आजाद हूं , आजाद रहूंगा और आजाद ही मरूंगा “,  आजादी के लिए अपनी जान की कुर्बानी देने वाले चंद्रशेखर आजाद का यही नारा था भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक एवं लोकप्रिय स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद का आज जन्म दिवस है उनका जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्यप्रदेश में झाबुआ जिले के भाबरा नामक स्थान पर हुआ जो अब आजाद नगर के रूप में जाना जाता है , उनके पिता का नाम पंडित सीताराम तिवारी तथा माता का नाम जगदानी देवी था उनके पिता ईमानदार स्वाभिमानी साहसी और वचन के पक्के थे यही गुण चंद्रशेखर को अपने पिता से विरासत में मिले थे देश के महान क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद मात्र 24 साल की युवावस्था में अंग्रेजो के खिलाफ लड़ते हुए शहीद हो गए , चन्द्रशेखर की पढ़ाई की शुरूआत मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले से हुई और बाद में उन्हें वाराणसी की संस्कृत विद्यापीठ में भेजा गया आजाद का बचपन आदिवासी इलाकों में बीता था यहां से उन्होंने भील बालकों के साथ खेलते हुए धनुष बाण चलाना व निशानेबाजी के गुर सीखे थे , मात्र 14-15 साल की उम्र में चन्द्रशेखर आजाद गांधी जी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए थे इस आंदोलन से जुड़े बहुत सारे लोगों के साथ चन्द्रशेखर को भी गिरफ्तार कर लिया गया था , गिरफ्तारी के बाद कोड़े खाते हुए बार-बार वे भारत माता की जय का नारा लगाते रहे और जब उनसे उनके पिता नाम पूछा गया तो उन्होंने जवाब दिया था कि मेरा नाम आजाद है  |

मेरे पिता का नाम स्वतंत्रता और पता जेल है और तभी से उनका नाम चंद्रशेखर सीताराम तिवारी की जगह चंद्रशेखर आजाद बोला जाने लगा इस गिरफ्तारी के बाद आजाद ने ब्रिटिशों से कहा था कि अब तुम मुझे कभी नहीं पकड़ पाओगे सन 1922 में गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन को अचानक बंद कर देने के कारण उनकी विचारधारा में बदलाव आया और वे क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़कर हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन गए इस संस्था के माध्यम से उन्होंने राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में 9 अगस्त 1925 को काकोरी कांड किया और फरार हो गए , इसके पश्चात उत्तर भारत की सभी क्रांतिकारी पार्टियों को मिलाकर एक करते हुए हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया तथा भगत सिंह के साथ लाहौर में लाला लाजपत राय की मौत का बदला सांडर्स की हत्या करके लिया एवं दिल्ली पहुंचकर असेंबली बम कांड को अंजाम दिया। अल्फ्रेड पार्क इलाहाबाद में 1931 में उन्होंने रूस की बोल्शेविक क्रांति की तर्ज पर समाजवादी क्रांति का आवाहन किया उन्होंने संकल्प किया था कि मैं ना कभी पकड़ा जाऊंगा और न ब्रिटिश सरकार पकड़ पाएगी ।

अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई में अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले भारत भूमि के महान सपूत चंद्रशेखर आजाद का काशी से अटूट नाता रहा है किशोरावस्था में काशी में संस्कृत पढ़ने आए चंद्रशेखर तिवारी को उनकी बहादुरी और अदम्य साहस के कारण “आजाद” नाम ज्ञानवापी में हुई सभा में मिला वाराणसी के लहुराबीर चौराहे का नामकरण उनके नाम पर आजाद पार्क है जहां उनकी भव्य प्रतिमा लगी हुई है सेंट्रल जेल में जहां उन्हें कोड़े मारे गए थे वहां उनकी आदमकद प्रतिमा के साथ भव्य स्मारक निर्मित है भारतीय स्वाधीनता के महानायक वीर सपूत चंद्रशेखर आजाद को कोटिश: नमन है ।