चेतना के नये द्वार खोलने वाला उपन्यास त्यागमूर्ति हिडिंबा :- अलका पांडे 

मुंबई |      युवा साहित्यकार पवन तिवारी ने अपनी लेखकीय प्रतिभा का प्रमाण अपने पहले ही उपन्यास अठन्नी वाले बाबूजी से ही दे दिया था जिसे महाराष्ट्र साहित्य अकादमी ने पुरस्कृत भी किया था , पवन तिवारी का पहला उपन्यास अठन्नी वाले बाबू जी मैंने पढ़ा है , ग्रामीण जीवन पर आधारित अद्भुत उपन्यास है मैं उन्हें व्यक्तिगत तौर पर भी जानती हूँ , उनके गीत , कवितायें , संचालन एवं वक्तृत्व कला सब , उत्कृष्ट , ख़ैर इन सब कारणों से इस उपन्यास से भी वैसी ही अपेक्षा था , कई वर्षों से यह उपन्यास चर्चा में भी था , त्यागमूर्ति हिडिंबा कुछ अंश मैंने काफी पहले एक पत्रिका में पढ़े भी थे , अब जब इंतजार खत्म हुआ पुस्तक हाथ में थी सोचा आज इसको पढ़ लेते हैं और पूरी पुस्तक पुस्तक पढ़ने के बाद काफी सारी धारणाएं जो हमारे मन में थी वह चली गयीं , महाभारत के एक पात्र को जो सदियों से उपेक्षित था पवन ने उसे न्याय दिलाया , उनकी मेहनत व शोध दृष्टि गोचर हो रही है उपन्यास में , महाभारत में हिडिंबा को एक राक्षसी दिखाया गया है और यह बताया है कि कामवासना के वशीभूत होकर भीम से शादी करती हैं लेकिन पवन तिवारी का उपन्यास में हिडिंबा का अलग ही रुप देखने को मिलता है यहां पर उसको एक देवी का रूप , नारी के उदात्त गुणों को दर्शाया है शायद काफी पढ़ने और शोध करने के बाद पवन तिवारी ने त्यागमूर्ती हिडिंबा लिखी     |

तभी यह उपन्यास सारी वर्जनाओं को तोड़ कर हिडिंबा को न्याय दिला पाया , जैसे – जैसे उपन्यास पढते जाती जिज्ञासा बढ़ती जाती , कई प्रश्न मस्तिष्क में घूमने लगे थे कई शब्द समझ नहीं आये गूगल बाबा की मदद ली और शब्दों का अर्थ समझा , मन में धारणा थी कि हिडिंबा राक्षसी थी वह कामवासना के वशीभूत थी इस लिये भीम से शादी की परंतु इस उपन्यास ने मेरे मन की परतें खोल दी हिडिंबा देवी नजर आने लगी ज्यों ज्यों उपन्यास आगे बढ़ता जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी , पवन ने अद्भुत उपन्यास लिखा है उत्कृष्ट भाषा का प्रयोग किया है शब्दों का कमाल देखते ही बनता है और वाक्य विन्यास अद्भुत जो उनकी परिपक्वता को दर्शाते हैं आज के समय में पवन तिवारी एक अलहदा साहित्यकार हैं त्यागमूर्ति हिडिंबा अधिक से अधिक पाठकों तक पहुंचनी चाहिए महाभारत पर आधारित इस कृति में जो हिडिंबा के चरित्र का दर्शन पवन ने कराया है या यूं कहूं कि हिडिंबा को न्याय पवन के उपन्यास से ही मिला है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी , यह उपन्यास चेतना के नये द्वार खोलता है हां जी त्याग मूर्ति हिडिंबा उपन्यास से ही हिडिंबा को न्याय मिला क्योंकि इसके पहले सब उसे राक्षसी जानते थे सही अर्थों में हिडिंबा के गुणों को , उसके त्याग को , उसकी सहनशीलता को m नारी के उदात्त गुणों को पवन तिवारी ने न्याय दिलाया है त्यागमूर्ति हिडिंबा के लिए जिसके मन में जो भी भ्रांतियां होंगी इस उपन्यास को पढ़ने से पाठक सोचने पर विवश होगा , जो पढ़ेगा न्याय करता जाएगा शक की कोई गुंजाइश नहीं है    |

हिडिंबा ने भीम की शर्तों को होशो हवास में माना क्योंकि वह शाश्वत प्रेम करती थी और अपने वचन पर अमल भी करना जानती थी , हिडिंबा एक सच्ची पतिव्रता महान स्त्री थी इस उपन्यास से बहुत सारी नई बातें मैंने जानी , जैसे साल का वृक्ष इतना विशाल होता है कि उस पर घर बना कर रहा जा सकता है या पहले मुझे पता नहीं था गर्भवती स्त्री यदि छटे मास अधिक क्षार का सेवन करती है तो बच्चे के बाल नहीं होते वह टकला होता है आदि , इस उपन्यास में बहुत सारी बातें हैं जो त्यागमूर्ति हिडिंबा को श्रेष्ठ बनाती हैं इसकी भाषा शैली अद्भुत है पवन की भाषा पर मज़बूत पकड़ है शब्दों का विन्यास भी कमाल का है पुस्तक को अंत तक पढ़ने के बाद मालूम होता है कि इस पुस्तक के लिखने से पहले लेखक ने काफी शोध किया होगा तभी बहुत सी बातें के तर्क के साथ प्रस्तुत किए हैं हिडिंबा त्यागमूर्ति तो थी ही साथ ही अदम्य साहसी , रूपवान निश्छल सहदय , दयालु , धर्म परायण भी थी , आज के परिवेश में पवन जैसे लेखकों की आवश्यकता है जो समाज के सामने बेहिचक सच्चाई की बात रखें और अपनी बात पर डटे रहे , त्याग मूर्ती हिडिंबा का साहित्य जगत में बहुत ही गर्मजोशी के साथ स्वागत होगा ऐसा मेरा मानना है इसे हिंदी के सुधी पाठकों तक पहुंचाना हम सभी साहित्यकारों का दायित्व है क्योंकि एक अच्छी किताब , एक अच्छे उपन्यास को जब तक लोग पढ़ेंगे नहीं साहित्य को जानेंगे नहीं , वाकई में त्याग मूर्ति हिडिम्बा में वह सब है जो एक साहित्यिक उपन्यास में होना चाहिए और सभी लोगों को इसे पढ़ना चाहिए और हिडिंबा के इस नए रूप का स्वागत करना चाहिए , यह उपन्यास साहित्य जगत में चर्चा का विषय बनेगा       |