डाॅ• करूणा शंकर उपाध्याय ने रखी रा•न•सा•कुंभ पटल पर विश्वभाषा हिन्दी पर विचार 

मुंबई |     राष्ट्रीय नव साहित्य कुंभ के पटल पर बुधवार 25 नवम्बर को 11वें व्याख्यान की श्रृंखला में प्रतापगढ़ उ०प्र० से हिंदी साहित्यकार डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय की उपस्थिति में उनके द्वारा साहित्यिक व्याख्यान में गंभीर विषय के रूप में विश्वभाषा हिंदी को चुना गया तथा पटल पर वार्ताकार के रूप में संस्था के राष्ट्रीय संयोजक संजय द्विवेदी भी उपस्थित थे , संगोष्ठी के शुभारंभ पूर्व डाॅक्टर साहेब का संक्षिप्त परिचय संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल कुमार राही ने दी तथा स्वागत के रूप में अपने मुक्तक व गज़ल को परोसा तत्पश्चात वार्ता हेतु द्विवेदी को जिम्मेदारी सौंपी , वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय का जन्म प्रतापगढ़ उ०प्र० में हुआ , प्रोफेसर एवं अध्यक्ष हिन्दी विभाग मुम्बई विश्वविद्यालय मुंबई , उनकी पोस्ट डॉक्टरल रिसर्च में सन 2001 में पाश्चात्य काव्यचिंतन के विविध आंदोलन थे और उनकी विभिन्न कृतियाँ प्रकाशित हैं जैसे 1995 में सर्जना की परख , आधुनिक हिन्दी कविता में काव्य चिंतन 1999 , मध्यकालीन काव्य चिंतन और संवेदना 2002 , पाश्चात्य काव्य चिंतन 2003 , विविधा 2008 , आभिजात्यवाद से उत्तर आधुनिकतावाद तक 2016 , अप्रतिम भारत 2018 , चित्रा मुद्गल संचयन 2020 , गोरखबानी 2020 , मध्यकालीन कविता का पुनर्पाठ 2020 आदि डाॅक्टर उपाध्याय ने 12 पुस्तकों का सम्पादन भी किया है और मानव मूल्य परक शब्दावली का विश्वकोश नामक पुस्तक के सह लेखन , तुलनात्मक साहित्य का विश्वकोश इसके अलावा आपको शोध निदेशक 32 पी.एच.डी. और 52 एम फिल छात्र उपाधि भी प्राप्त है अन्य प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में 380 से अधिक आलोचनात्मक शोध लेख प्रकाशित हैं पं० दीनदयाल उपाध्याय आदर्श शिक्षक सम्मान , महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य एकादमी का बाबूराव विष्णु पराडकर पुरस्कार 2004 – 05 में हिंदी सेवी सम्मान 2006 , आशीर्वाद राजभाषा सम्मान 2009 – 12 में विश्व हिंदी सेवा सम्मान 2009 , जीवंती फाउंडेशन का साहित्य गौरव सम्मान 2014 –  15 , साहित्य भूषण सम्मान , विद्यापति कवि कोकिल सम्मान , पुस्तक भारती संस्थान , कनाडा का प्रो० नीलू गुप्ता सम्मान के अतिरिक्त साहित्यिक क्षेत्रों में बहुत सारे सम्मान प्राप्त हुए हैं विश्वभाषा हिन्दी पर प्रकाश डालते हुए डाॅक्टर उपाध्याय ने कहा कि आज हमारी संस्कृति भी हिन्दी के साथ संपूर्ण विश्व में प्रचलित हो चुकी है अब हमें हिन्दी को लेकर ज्यादा चिंतन करने की आवश्यकता नहीं है हिन्दी आपसी बोलचाल व फिल्मों , इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के द्वारा विकसित हो चुकी है इस व्याख्यान का आयोजन राष्ट्रीय नव साहित्य कुंभ के संस्थापक रामस्वरूप प्रीतम (श्रावस्ती) ,  अध्यक्ष अनिल कुमार राही (मुंबई) , संयोजक संजय द्विवेदी (कल्याण- महाराष्ट्र) , सचिव धीरेन्द्र वर्मा धीर (लखीमपुर खीरी) , संरक्षक दिवाकर चंद्र त्रिपाठी रसिक (छत्तीसगढ़) एवं मीडिया प्रभारी विनय शर्मा दीप (ठाणे-महाराष्ट्र) , उपाध्यक्ष सत्यदेव विजय (मुंबई) , उप सचिव बबिता पांडे , कोषाध्यक्ष प्रमिला किरण के सहयोग से संपन्न हुआ , अंत में उपस्थित डाॅ. उपाध्याय का सम्मान संस्था द्वारा सम्मानपत्र देकर किया गया     |