दरगाह हज़रत मुबारक़ खां शहीद पर रवायती उर्स का हुआ आगाज़

भटकी हुई इंसानियत को अमन का संदेश देती दरगाह मुबारक खां शहीद

गोरखपुर ।  सूफी संतों और वलियों की दरगाह से अमन और भाईचारगी का सबक मिलता रहा है , मुल्क में जब जब इंसानियत फरेब का शिकार होकर जुल्म और नफरत के रास्ते की ओर चली है तब तब भटकी हुई इंसानियत के लिए राहत और सुकून संतो और वलियों के इन आस्तानों से ही हासिल हो सका है ।

हम बात कर रहे हैं दरगाह हज़रत मुबारक खां शहीद की, गोरखपुर शहर के बेतियाहाता स्थिति नॉर्मल के पास वाले इसी आस्ताने के बिल्कुल बगल में वह ईदगाह मौजूद है जहां लगे मेले को देखकर विश्व प्रसिद्ध साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद्र ने अपनी कालजयी रचना ईदगाह लिखी थी ।

रविवार को इस क़दीमी दरगाह पर रवायती उर्स की शुरुआत हो गई और भारतीय जनता पार्टी के के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व देवरिया से सांसद रमापति राम शास्त्री ने अकीदत की चादर पेश कर सैकड़ों साल से यहां चली आ रही इंसानियत भाईचारा अमन और मोहब्बत की बुनियाद और मजबूत कर दिया ।

नगर निगम की लापरवाही से जर्जर सड़क और खस्ताहाल सफाई खोल रही प्रदेश के विकास की पोल

हालांकि नगर निगम की लापरवाही से जर्जर सड़क और खस्ताहाल सफाई व्यवस्था के बीच उर्स शुरू तो हो गया लेकिन उसने प्रदेश में विकास के दावे को पोल खोल दी ,  हालांकि नगर आयुक्त को यहां से बाकायदा पत्र जारी कर व्यवस्थाओं में सुधार के लिए आग्रह किया था लेकिन न तो सड़के सुधरी न ही सफाई व्यवस्था ,  जबकि उर्स के दौरान यहां उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश के साथ ही पड़ोसी राष्ट्र नेपाल से भी हजारों की तादात में जायरीन यहां पहुंचते हैं ,बहरहाल सैकड़ों साल पुरानी इस मशहूर दरगाह पर आस्था और इंसानियत पूरी तरह हावी है और यह सभी धर्मों के लोगों की आस्था का केंद्र है ।

ग्यारहवीं सदी की इस दरगाह के इतिहास के साथ तमाम किदवंतियाँ जुड़ी हुई हैं कहा जाता है कि बाबा ईरान के किसी शहर से यहां आये उस समय यहां एक जुल्मी और बर्बर राजा का राज था बाबा ने राजा को जुल्म करने रोका तो दुष्ट राजा को यह अच्छा नही लगा और उसने धोखे से बाबा को शहीद कर दिया कहते हैं कि उसी रात राजा अपने पूरे महल के साथ जमींदोज हो गया और महल के ऊपर एक झील बन गई जो आज भी रामगढ़ ताल के नाम से गोरखपुर शहर में मौजूद है |

मुबारक खां शहीद दरगाह पर आस्था रखने वालों का मानना है कि मुल्क की सियासत के असर से शहर में कई बार अमन ख़तरे में  दिखा लेकिन बाबा की दुआओं का फ़ैज़ था कि हमेशा से इंसानियत महफूज़ रही और संवेदनशीलता के केंद्र में रहे गोरखपुर में आज तक कोई दंगा फसाद नही हो पाया , बृहस्पतिवार को यहां हाजिरी देने वाले और मन्नत मांगने वालों का हुजूम लगता है हर धर्म के लोग इस हुजूम में शामिल रहते है ।

यहां आने वाले लोगों का कहना है कि हर तरफ से वह निराश होकर बाबा की दरगाह पर आये थे और जब अपनी खाली झोलियां बाबा के आस्ताने पर फैलाई तो बाबा ने उनकी झोलियां मुरादों से भर दी ,सैकड़ों सालों से इन वलियों की दरगाहों से यही सिलसिला चला आ रहा है , बहरहाल हर बार नफरतों की गर्म हवाओं के बीच, गंगा जमुनी तहजीब की मुहाफिज इस दरगाह से निकलने वाली इंसानियत की ठंडी बयार शहर के मौसम को खुशगवार करती रही है जो इंसानियत खत्म होने तक जारी रहेगी ।