परदेस में भूखे प्यासे रहे , पैदल चलकर लौटे घर  

भदोही । दूसरे राज्यों से सैकड़ों किमी. नंगे पांव चलकर आने वाले श्रमिकों का दर्द रुला रहा है , हजारों किलोमीटर मजदूरों के साथ पैदल चल रही महिलाएं, बच्चों को देखकर आंसू भर आते हैं , ऐसा लगता है ईश्वर ऐसा दिन किसी गरीब के जीवन मे न दे , कोरोना महामारी से बचाव को लागू किया लॉकडाउन परदेश में रोजी रोटी के लिए गए लोगों को अपने-पराए का पाठ सिखा गया , भूख और अकेलेपन के साथ घर लौटने की चिंता ने उन्हें सैकड़ों ही नहीं , हजारों किमी. पैदल यात्रा को मजबूर कर दिया , इस दौरान उन्हें क्या-क्या झेलना पड़ा इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब वो दोबारा अपना घर व गांव छोड़कर परदेश जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं , ज्यादातर का कहना है कि जहां अपने नहीं वहां अब जाना नहीं , मालूम हो कि अकेले भदोही क्षेत्र में ही परदेश से कई सैकडा लोग लॉकडाउन के दौरान अपनी रोजी रोटी छोड़कर वापस लौटे हैं , परदेश से लॉकडाउन के दौरान संघर्ष कर लौटे क्षेत्रवासियों के मन को टटोला तो उन्होने आप बीती बताई ।
विकास खंड कपसेठी के गांव कालीका बारा निवासी प्रकाश उर्फ बाबू भैया पिछले कई सालो से महाराष्ट्र के भयंदर में रहकर स्टील के बर्तनों में पॉलिश का काम करते थे , बताया कि लॉकडाउन के समय जब पैसे खत्म हो गए तो वहां लोग मदद करने के बजाय घर लौट जाने की सलाह देने लगे , मजबूरन नौ दिन पैदल चलकर यहां पहुंचे हैं , अब यहां क्वारन्टीन सेंटर में हैं , दस साल वहां रहने के बावजूद वहां के लोगों का व्यवहार देखकर अब जाने का मन नहीं है ।
अब यही मेहनत मजदूरी करके जिंदगी पार कर लूंगा, लेकिन अब परदेश नहीं जाऊंगा , इसी गांव निवासी सुनील का कहना है कि कभी कभी लगता था कि घर पहुंचकर अपनों से मिल भी पाएंगे या नहीं , बेरोजगारी में जीना मुश्किल है फिर भी अब इतनी दूर काम करने नहीं जाएंगे , यहीं रहकर कुछ करेंगे , क्योंकि वहां पर अपना कोई नज़र नही आता है |