राष्ट्रवाद राष्ट्रप्रेम राष्ट्रहित को दंभ मुक्त ही रखें : अरूण विजय

ठाणे |  जैन मुनि डॉ. अरुण विजय ने कहा कि गत 5 से 7 वर्षों से भारत देश के भारतीय नागरिकों में राष्ट्रप्रेम राष्ट्र हित की भावना में काफी अच्छी मात्रा में जागृति आई है जागृति देखी जा रही है अच्छा तो यह होता कि 1947 से ही बढ़ गई होती तो परिणाम निश्चित ही कुछ अलग ही आता लेकिन एक बात भी निश्चित है कि देश की शिर्ष नेतागिरी पर सबसे बड़ा आधार रहता है यथा राजा तथा प्रजा की कहावत गलत नहीं है भारत के प्रथम प्रधानमंत्री स्वयं ही इतने कट्टर राष्ट्रवादी राष्ट्र प्रेमी नहीं थे यह सर्व विदित है यह देश का परम दुर्भाग्य है , नहीं तो भारत विदेशी ताकतों के हाथों गुलामी से मुक्त हुआ ऐसे कठिन दौर में ही भारतीयों ने कट्टर राष्ट्रवाद और राष्ट्रप्रेम की भावना कूट-कूट कर भर ली होती तथा विकसित की होती तो भी मात्र एक दशक में ही भारत देश आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर भारत बन चुका होता आज 72 वर्षों की लंबी सफर के पश्चात भारत को आत्मनिर्भर बनने बनाने का अवसर नहीं आता अब तो चीन के सामने भारत की यह मजबूरी की यह निशानी है प्रत्येक विषय में आत्मनिर्भरता का नारा बुलंद किया जा रहा है ।

चलो फिर भी ठीक ही है आज सबसे बड़ी विशेषता यह है कि भारतीय राजकारण में शीर्ष नेतृत्व ही आत्मनिर्भरता का मुख्य प्रेरक बना है सक्षम समर्थ नेतृत्व करने वाले प्रधानमंत्री आदि आत्मनिर्भरता का नारा उद्घोष बुलंद बनाने लगे हैं इसलिए ऐसी वृत्ति प्रजा में भी जबरदस्त चलती हुई दृष्टिगोचर हो रही है , लेकिन कई बार देश प्रेम राष्ट्र हित की बातें बहुत खोखली भी साबित हुई है कई नेता भाषणों में राष्ट्रहित की बहुत बड़ी-बड़ी बातें करते हैं लेकिन उन को सबसे ज्यादा विदेशी वस्तुएं पसंद होती है , घर ऐसी सैकड़ों विदेशी वस्तुओं से भरे हुए होते हैं नेताओं अधिकारियों के पास दो नंबर का काला धन भी प्रचुर मात्रा में रहता है ऐसे समय में विदेशों से महंगी से महंगी वस्तुएं खरीद कर अपनी शोभा बढ़ाने का शौक पूरा करते हैं ऐसे दंभ से तो देश का भला कभी नहीं हो सकता है  |

देश को आयात करता मैं से निकास कर्ता कैसे बनाना है इस विषय में सरकार ऐसी नीति बनाएं  देश के छोटे-मोटे निर्माताओं को लघु उद्योग के लिए निवेश में सहयोग करें उन पर गुणवत्ता वाली वस्तुएं बनाने का आग्रह रखकर वैसा मार्गदर्शन करें, ताकि गुणवत्ता सुधरे आज भी भारत देश को आत्मनिर्भर बनाना संभव है देश प्रेम देश हित की भावना को प्राधान्यता देखकर प्रोत्साहन देकर आगे बढ़ाया जा सकता है छोटी बड़ी हर चीज वस्तु के लिए 130 करोड़ की जनता हमेशा ही सक्रिय है संसाधन भी काफी है पर्याप्त है मार्गदर्शन तथा आर्थिक सहयोग करके देशवासियों को प्रोत्साहित करके स्वदेशी की योजना साकार कर सकते हैं  ।