शिक्षा मातृभाषा , राष्ट्रभाषा में होनी सही है या विदेशी भाषा में ? :- डॉ. अरूण विजय

ठाणे |   जैन मुनि डॉ. अरुण विजय ने कहा कि बालक माता की गोद में माता की भाषा में जितना जल्दी से सीखता है समझता है शायद उतना जल्दी वह अन्य किसी भी भाषा में नहीं सीख पाता है दुनिया के अधिकांश देशों की ऐसी दृढ़ मान्यता है लेकिन भारत ही दुनिया में एकमात्र ऐसा देश है जो अंग्रेजी भाषा की गुलामी मानसिकता रखता है क्योंकि अंग्रेजों का राज्य भारत पर करीब 200 वर्षों तक रहा , भले ही अंग्रेज देश छोड़कर चले गए लेकिन भारतीयों के मन से अंग्रेजी भाषा की गुलामी मानसिकता नहीं जा रही है , इतनी हद तक अपनी स्वयं की मातृभाषा पर नफरत दिखाई देती है कि जन्म देने के बाद माता ही अपनी संतान के साथ अंग्रेजी बोलने लगती है , यह आज की आधुनिक माताओं की दया जनक परिस्थिति है मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञ भी इसी बात की पुष्टि करते हैं कि मातृभाषा में सिखाने समझाने से बालक की बुद्धि का विकास अच्छा होता है सरलता और सुगमता से बालक को समझ में आता है मति स्मृति अच्छी विकसित होती है मातृभाषा में पढ़ाकर भारत का विकास करके विश्व के सामने जापान चीन आदि कई देशों ने प्रत्यक्ष प्रमाण प्रस्तुत किया है इससे बहुत पाठ सबको लेना चाहिए लेकिन भारत की मानसिकता न सुधरने का सबसे बड़ा कारण राजकीय कमजोरी का है आश्चर्य तो इस बात का है कि आजादी के 72 वर्षों बाद भी भारत देश की अपनी राष्ट्रभाषा भी इतनी समृद्ध नहीं हुई जितनी अंग्रेजी इस देश में ज्यादा समृद्ध हो गई , आज इसका परिणाम है कि भारत के ही हिंदी भाषी की बहुलता वाले उत्तर प्रदेश उत्तरांचल आदि राज्यों में 8 लाख विद्यार्थी हिंदी भाषा में फेल होते हैं आश्चर्य तो इस बात का है कि इतने बड़े करूण परिणाम सामने आने के बावजूद भी शिक्षा विभाग की आंखें खुलती नहीं है दक्षिण भारतीय वर्ग हिंदी का विरोध करके अंग्रेजी को ज्यादा पसंद करते हैं उनको यह भी तो सोचना चाहिए कि अंग्रेजों की गुलामी के पहले दक्षिण भारतीय लोग अंग्रेजी प्रचलन में ही नहीं थी तब क्या करते थे ? कौन सी भाषा बोलते थे ? क्या मात्र मातृभाषा ही सब कुछ थी क्या राज्य भाषा और राष्ट्रभाषा नहीं होनी चाहिए ? भारत इतना बड़ा स्वतंत्र देश है फिर भी भारतीय लोग ही भारत की राष्ट्रभाषा का गौरव घटाएंगे तो हिंदी भाषा के हत्यारे अन्य कोई दूसरे नहीं भारतीय स्वयं ही कहलाएंगे , सरकार जल्दी जागे और भारत को भाषाकीय गुलामी में से बाहर निकाले ऐसा अरुण विजय महाराज ने का कहना है  |