हिन्दी दिवस पर हृदयागंन संस्था के कवियों ने मचाया धमाल

मुंबई |     हृदयांगन साहित्यिक एवं सामाजिक संस्था (पंजीकृत) मुंबई द्वारा दिनांक 13 सितम्बर 2020 को सायं 4 बजे हिन्दी दिवस की पूर्व संध्या पर संस्था का प्रथम ऑनलाइन राष्ट्रीय कवि सम्मेलन आयोजित किया गया जिसका संचालन संस्था के राष्ट्रीय महासचिव एवं सुप्रसिद्ध कवि उमेश मिश्रा ने किया सर्वप्रथम संस्था के अध्यक्ष विधुभूषण त्रिवेदी विधुजी विद्यावाचस्पति ने सूचित किया कि कानपुर के सुप्रसिद्ध गजलकार गीतकार लालमन आजाद जो आजाद कानपुरी के नाम से विख्यात रहे वे 10 सितम्बर को करोनाग्रस्त होकर अलविदा हो गये हृदयांगन संस्था को उनसे बहुत उम्मीदे थी उन्हें मौन श्रद्धांजलि देकर कार्यक्रम आगे बढाया गया आमंत्रित कवियों में कानपुर से वरिष्ठ कवियत्री डाo प्रमिला पाण्डेय , डाo अजीत सिंह राठौड़ लुल्ल कानपुरी (हास्य) , उन्नाव से राजेश वर्मा (ओज कवि) , जौनपुर से शारदा प्रसाद दुबे , गोरखपुर से रामजीत गुप्ता , अहमदाबाद से विजय तिवारी (गजलकार ) नवी मुंबई खारघर से सुप्रसिद्ध कवित्री तनूजा चौहान (श्रृंगार ) मुंबई से नागेन्द्रनाथ गुप्ता (गजलकार एवं संस्था के मार्गनिर्देशक) , गीतकार सदाशिव चतुर्वेदी मधुर , सुप्रसिद्ध कवि एवं गीतकार अरुण मिश्रा अनुरागी , वरिष्ठ कवि रामप्यारे सिंह रघुवंशी , पत्रकार कवि विनय शर्मा दीप (संस्था के मीडिया सचिव) , नवोदित कवित्री सुश्री नेहा मिश्रा , डाॅ• प्रमिला पांडे (उपाध्यक्ष-हृदयागंन साहित्यिक एवं सामाजिक संस्था) एवं कुमार ज्ञानचन्द ज्ञान आमंत्रित थे तकनीकी कारणों से रामजीत गुप्ता और शारदा प्रसाद दूबे कार्यक्रम में रहते हुए भी कवि सम्मेलन में कविता पाठ नही कर सके   |

कार्यक्रम की अध्यक्षता , समीक्षा और आशीर्वचन प्रख्यात विद्वान साहित्य मनीषी और पत्रकार तथा संस्था के वरिष्ठ मार्गनिर्देशक हरिवाणी ने की गौरतलब बात यह है कि उमेशचन्द्र मिश्रा कवि एवं मंच संचालक ने चलते करोना महामारी के दौरान कोरोना योद्धा की सेवा , आनलाइन शिक्षण कार्य के साथ आन लाइन कवि गोष्ठियों एवं कवि सम्मेलनो आदि से सभी कवियों साहित्यिकारो को जोड़े रखा और उदासीनता और अकेलेपन के जान लेवा वातावरण से साहित्य प्रेमियों को दूर रख उनमें नव उत्साह का संचार किया , उनके कुशल और उत्कृष्ट कवि मंच संचालन के लिए संस्था के सर्वनिर्णय से संस्था अध्यक्ष विधुजी के हाथों उन्हें उत्कृष्ट मंच संचालक शिरोमणि 2020 के सम्मान मानद पत्र शाल श्रीफल के साथ रुपये 11,000/- का मानद सम्मान से विभूषित किया गया अंत में बालकवि चिरंजीव लविन और अग्रिमा बाजपेई द्वारा राष्ट्रीय गान हुआ तत्पश्चात संस्थापक ने उपस्थित सभी का आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद दिया और गोष्ठी का समापन किया    |

उपस्थित साहित्य महाकुंभ में साहित्यकारों द्वारा जो प्रस्तुति हुई , उसकी चंद पंक्तियाँ इस प्रकार रही :-

संचालन करते हुए उमेश मिश्रा ने क्या खूब कहा :-

हर ज्ञानी को विषय वस्तु का ज्ञान होना चाहिए l
देश की मान मर्यादा का भान होना चाहिए l
यदि विश्व पटल पर हम सबको अपनी पहचान बनानी है l
तो सर्वप्रथम स्वभाषा का सम्मान होना चाहिए ll

वरिष्ठ साहित्यकार विधुभूषण त्रिवेदी विधुजी ने चार लाइनें बेहतरीन पढीं :-

हम कान्हा को हिन्दी में ही
गोपी गीत सुनायें।
और अयोध्या काशी जाकर
हिन्दी में अपनी पीर बतायें।।
मंदिर मस्जिद का बैर पुरातन
मन का धर्म पुराना है
इस मायानगरी में भटक गया हूँ
अपना गाँव वहीं ठिकाना है।।

वरिष्ठ कवि नागेन्द्र नाथ गुप्ता की दो पंक्तियाँ काफी हुई :-

जो अपना सा लगता है,
वह अब सपना लगता है।
तेरा-मेरा मिलना तो इक,
दुर्घटना सा लगता है।
नींद उनींदीं आंखें हैं,
निशिदिन जगना पड़ता है।
कैद है पंछी पिंजरे में,
पंख कतरना लगता है।।

कवि सम्मेलन में अवधी मिट्ठी की महक बिखेरते हुए विनय शर्मा दीप ने वर्षा ऋतु पर शानदार सवैया सुनाकर मंत्रमुग्ध कर दिया :-

बिन मौसम के बदरा बरसै,कुहकै-सिहकै हियना सबकी ।
धधकत छतिया महिं शीतल भै,नदिया,झरना,नहरा बड़की ।
सुगना-सुगनी वहिं डारन पे,गुण गावत कोयल हौ रब की ।
चकिया चितवै चित चातक कौ,चितवै पिय कौ बहुरी नवकी ।।
नीर हई बदरा बनिके,चहुँ ओर निहारत-घूमत हौं हे।
आवतु हौं वहिं क्षीर मझारन,अंबर के डग फिरत हौं हे।
खेत-सिवान,किसान-सुजान,हिया धरती संग चूमत हौं हे।
आंचर हौं धइके वसुधा,जग नाचत-गावत झूमत हौं हे ।।
प्रकृति के सौंदर्य का भाव बिखेरते हुए सदाशिव चतुर्वेदी ने क्या खूब कहा-
बहार बागों में जबसे देखा,अजब सी खुशबू महक रही है।
है दिल मे ऐसी संगीत बजती,जैसे हजारों चिड़ियां चहक रही हैं।।
श्रृंगार रस
तुझसे आंखें चार होना,एक कहानी बन गयी।

युवा कवि , गज़लकार कुमार ज्ञान चंद ज्ञान ने हिन्दी दिवस पर हिन्दी , हिन्दुस्तान को जोड़ने का प्रयास किया :-

हिंदी भाषा ने मुझको इस धरती से जोड़े रखा।
हिंदी भाषा ने मुझको अंग्रेजी से मोड़े रखा।
हिंदी भाषा ने मुझको एकत्व का एहसास दिया।
हिंदी भाषा ने मुझको अँधियारे में प्रकाश दिया।
हिंदी भाषा ने मुझको साहित्य शिला का ज्ञान दिया।
हिंदी भाषा ने मुझको तुलसी कबीर रसखान दिया।
हिंदी भाषा ने ही तो हर मुश्किल आसान किया।
हिंदी भाषा ने ही तो अनपढ़ को विद्वान किया।
हिंदी भाषा ने मुझको राष्ट्रगीत का गान दिया।
दिनकर गुप्त निराला वर्मा नीरज रहिमन खान दिया।
हिंदी भाषा ने मुझको गौरव मान सम्मान दिया।
हिंदी को जीवित रखने ख़ातिर अपना हिंदुस्तान दिया।
हिंदी भाषा देश विदेशों तक में बोली जाती है।
इस भाषा में खुशबू हरदम मिलवर्तन की आती है।।

वरिष्ठ साहित्यकार रामप्यारे सिंह रघुवंशी ने कलयुग के प्रभाव का जिक्र अपनी रचना से करते हैं :-

काल चक्र ई अइसन सबके,चढ़ल कपारे डोलत बा।
बड़काभइया शहर से आइलन,केहू नईखे बोलत बा।।
बॉम्बे जइसन शहर में उनकर,
चढ़ल जवानी बीत गइल,
उनहीं के पैसा से हमारे,
घर कै पक्की भीत भइल,
लमवैं से अब छोटका बड़का,सबही मेथी छोलत बा।
बड़काभइया शहर सेआइलन,केहू नईखे बोलत बा।।
पांव में छाला पड़ल बा उनके,
अखिया जइसे जागल बा,
बांम्बे से पैदल अइले में ,
सोरह दिनवां लागल बा,
बड़े प्यार से बोलत बाड़े ,मुंहवां केहु ना खोलत बा।
बड़काभइया शहर सेआइलन,केहू नईखे बोलत बा।।

युवा कवयित्री कुमारी नेहा मिश्रा नेह द्वारा प्रस्तुत अयोध्या उत्सव गीत बहुत प्रसंसनीय रहा :-

बरसि पड़ ! मेघा आजु मगन होइ के।
पुष्प बाटिका सब खिलि आईं,
गांव नगर बाजे हो बधाई,
बदरा गरजे सुनत सहनाई।
बरसि पड़s मेघा आजु मगन होई के ।।
छप्पन रंग के भोग बनायऊँ,
देबी-देवता के न्यौता पठायऊँ,
सगरी नगरिया दियना जलायऊँ।
बरसि पड़s मेघा आजु मगन होई के।।
सोने- चांदी से रथवा मढ़ईहों,
संग सारथी के रथ भेजवईहों,
ओही रथवा से श्रीराम अवध अइहइ।
बरसि पड़s मेघा आजु मगन होई के।।
हृदय कमल रहिया में बिछउबै,
कुंकुम तिलक भाल आरती उतरबै
दीन-हीन नगरी के अर्जी सुनउबै,
बरसि पड़s मेघा आजु मगन होई के।।

वरिष्ठ साहित्यकार रामजीत गुप्ता ने राम नाम की महिमा का गुणगान करते हुए कहा :-

जो भी लेते राम का नाम
बन जाते हैं बिगड़े काम
चाहे ठग हो चाहे ठाकुर
सबके दाता सबके राम।
राम के जैसा बोल नहीं है
राम नाम का तोल नहीं है
रंक भी जपते राजा जपते
राम नाम का मोल नही है।
जिसके मन में बसते राम
मिल जाते हैं चारो नाम
मन मंदिर में होती पूजा
मन भागे तो लगे लगाम।
राम हैं रमते भक्तों में
राम हैं रहते संतों में
शबरी के घर जाते हैं
ना मजहब ना पंथो मे।

कवि , गीतकार अरूण मिश्रा अनुरागी की लेखनी भी कम न थी :-

अभिमान भी करते हैं सम्मान भी देते हैं ।
सितंबर के महीने में हिंदी को पूजते हैं ।।
लिखते हैं कविताएँ गाते हैं गीत हम सब ।
हर वर्ष मनाते हैं हिंदी दिवस को हम सब ।।
हाथों में पुष्प लेकर उत्सव को मनाते हैं।
अभिमान भी करते हैं सम्मान भी देते हैं।