आखिर हम गुलाम किसके अंग्रेजों के या अंग्रेजी के ? :- डॉ.अरूण विजय

ठाणे |   जैन मुनि डॉ. अरुण विजय ने कहा कि गुलामी आखिर गुलामी होती है किसी भी रूप में उसे कोई भी समझदार अच्छा नहीं कह सकता है अंग्रेजों ने भी भारत पर राज्य किया और मुगल आक्रांताओं ने भारत पर राज्य किया दोनों ने देश को अपना गुलाम बनाया था मुगल आक्रांताओं का काल अंग्रेजों के काल से तो 4 गुना ज्यादा ही रहा था करीब 800 वर्षों तक मुगलों ने भारत को गुलाम बना कर रखा था तो अंग्रेजों ने दो शताब्दी के आसपास तक का काल भारत को अपनी गुलामी में जकड़ कर रखा था मुगलों से आजाद होने के पश्चात मुगलों की संस्कृति – उर्दू भाषा आदि भारत में दीर्घकाल तक नहीं रही लेकिन अंग्रेज भारत छोड़कर जाने के बाद अंग्रेजों की गुलामी शत प्रतिशत गई तो नहीं है अंग्रेज भारत देश छोड़कर जरूर गए इससे हमें क्षेत्रीय आजादी जरूर मिल गई है लेकिन परोक्ष में आज भी अंग्रेजों की भाषा उनके वेशभूषा इत्यादि कई ऐसी चीजें जो भारतीयों के साथ दूध में शक्कर की तरह ऐसी तथा इतनी ज्यादा घूल मिलकर एक रस हो चुकी है इसी का परिणाम है कि क्षेत्रीय आजादी हमें मिली लेकिन सांस्कृतिक भाषाकीय, आहार – विहार, आचार विचार तथा शैक्षणिक आजादी 72 वर्षों के बाद भी नहीं मिल पाई है  |

इंडिया नाम अंग्रेजों का दिया हुआ है मूल में असल विरासत में हमारा भारत नाम जो हजारों लाखों वर्षों का गौरवशाली इतिहास से सुशोभित है ऐसा नाम आज 72 वर्षों के बावजूद भी हमें इतना प्रिय क्यों नहीं है ? क्या भारतीयों की गुलामी मानसिकता कभी घट ही नहीं सकती है ? आश्चर्य तो इस बात का है कि हमारे संविधान में भारत नाम के प्रयोग के बदले इंडिया नाम के प्रयोग को ही प्राधान्यता दी गई है क्योंकि संविधान के निर्माता भी शिक्षा विदेशों में पाकर आए हुए थे उनकी मानसिकता कैसी थी ? वह भी टाई और सूट के विदेशी परिधानों में सूसज्ज अपना गौरव बढ़ाते थे, अब हम बात करते हैं अंग्रेजी भाषा की भारत जैसे अपने खुद के आजाद स्वतंत्र देश में हिंदी भाषा के प्रति इतना आदर सद्भाव नहीं है शायद इससे कई गुना ज्यादा अंग्रेजी भाषा को महत्व दिया जाता है आखिर ऐसा क्यों ? कहां है हमारा राष्ट्रप्रेम ? देश भक्ति ? क्या मात्र राष्ट्रप्रेम दिखावा है ? क्या हमारा राष्ट्रप्रेम अंदर से खोखला है ? क्या ऐसी मानसिकता दुनिया के किसी देश में है ? 72 वर्षों के बाद भी ऐसी स्थिति क्या शरमजनक नहीं है ? उठो जागो भारतियों, तोड़ दो गुलामी की जंजीरों को  |