ठाणे नारपोली में भागवत कथा का आयोजन

ठाणे । श्रीबालाजी मानव सेवा समिति व श्रीकृष्ण जनकल्याण सेवा समिति की ओर से आयोजित श्रीमद भागवत कथा का आयोजन यज्ञ इस्थान भंडार कंपाउंड हनुमान मंदिर नारपोली भिवंडी में काशी से आये हुए भागवत भास्कर श्रीकांत महराज ने अपने मुखारबिंद से अजामिन,प्रहलाद,रामजन्म,कृष्णजन्म की कथा सुनाकर आये हुए भक्तों को मंत्र मुग्ध कर दिया ।
भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि की घनघोर अंधेरी आधी रात को रोहिणी नक्षत्र में मथुरा के कारागार में वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था , महराज ने कहा कि द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज्य करता था उसके अत्याचारी पुत्र कंस ने उसे गद्दी से उतार दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा ।
कंस की एक बहन देवकी थी, जिसका विवाह वसुदेव नामक यदुवंशी से हुआ था एक समय कंस अपनी बहन देवकी को उसकी ससुराल पहुंचाने जा रहा था रास्ते में आकाशवाणी हुई हे कंस जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है , इसी के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा वध करेगा यह सुनकर कंस वसुदेव को मारने के लिए दौड़ा  तब देवकी ने उससे विनय पूर्वक क हा मेरे गर्भ से जो संतान होगी, उसे मैं तुम्हारे सामने ला दूंगी,मेरे पति को मारने से क्या लाभ है ।
 कंस ने देवकी की बात मान ली और मथुरा वापस चला आया उसने वसुदेव और देवकी को कारागृह में डाल दिया वसुदेव-देवकी के एक-एक करके सात बच्चे हुए और सातों को जन्म लेते ही कंस ने मार डाला अब आठवां बच्चा होने वाला था कारागार में उन पर कड़े पहरे बैठा दिए गए उसी समय नंद की पत्नी यशोदा को भी बच्चा होने वाला था  उन्होंने वसुदेव-देवकी के दुखी जीवन को देख आठवें बच्चे की रक्षा का उपाय रचा जिस समय वसुदेव-देवकी को पुत्र पैदा हुआ, उसी समय संयोग से यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ, जो और कुछ नहीं सिर्फ माया थी ।
जिस कोठरी में देवकी-वसुदेव कैद थे उसमें अचानक प्रकाश हुआ और उनके सामने शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए चतुर्भुज भगवान प्रकट हुए दोनों भगवान के चरणों में गिर पड़े तब भगवान ने उनसे कहा अब मैं पुनः नवजात शिशु का रूप धारण कर लेता हूं तुम मुझे इसी समय अपने मित्र नंदजी के घर वृंदावन में छोड़ दें और उनके यहां जो कन्या जन्मी है उसे लाकर कंस के हवाले कर दो तुम चिंता न करो जागते हुए पहरेदार सो जाएंगे, कारागृह के फाटक अपने आप खुल जाएंगे और उफनती अथाह यमुना तुमको पार जाने का मार्ग दे देगी ।
उसी समय वसुदेव नवजात शिशु-रूप श्रीकृष्ण को सूप में रखकर कारागृह से निकल पड़े और अथाह यमुना को पार कर नंदजी के घर पहुंचे वहां उन्होंने नवजात शिशु को यशोदा के साथ सुला दिया और कन्या को लेकर मथुरा आ गए कारागृह के फाटक पूर्ववत बंद हो गए अब कंस को सूचना मिली कि वसुदेव-देवकी को बच्चा पैदा हुआ है उसने बंदीगृह में जाकर देवकी के हाथ से नवजात कन्या को छीनकर पृथ्वी पर पटक देना चाहा, परंतु वह कन्या आकाश में उड़ गई और वहां से कहा- अरे मूर्ख मुझे मारने से क्या होगा? तुझे मारनेवाला तो वृंदावन में जा पहुंचा है वह जल्द ही तुझे तेरे पापों का दंड देगा ।