भाजभा प्रचार समिति के तत्वावधान में माथेरान के पहाड़ी पर कवियों की सजी महफ़िल

भारतीय जन भाषा प्रचार समिति ठाणे एवं अखिल भारतीय साहित्य परिषद महाराष्ट्र के तत्वावधान में और संस्था अध्यक्ष आर पी सिंह रघुवंशी के आयोजन  और संयोजन में दिनांक 30 मार्च एवं 31 मार्च 2019 दो दिवसीय शिविर का आयोजन किया गया, जिसमें साहित्य पर परिचर्चा, योगाभ्यास के साथ-साथ कवि सम्मेलन भी हुआ पाँच सत्रों में कार्यक्रम को बाँटकर,कवि-सम्मेलन, योगाभ्यास,प्रशिक्षण, कविसम्मेलन एवं आभार- सत्र  को बखूबी अंजाम देकर दूसरे दिन संध्या 3 बजे समापन किया गया ।
उक्त समारोह में होली गीत प्रतियोगिता भी रखी गयी जिसमें प्रथम पुरस्कार विजेता रहे वरिष्ठ कवि,गीतकार श्री राम स्वरूप साहू, द्वितीय विजेता रहे श्री लालबहादुर यादव कमल जी और तृतीय विजेता श्री अनिल कुमार राही जी रहे। माथेरान के इस पावन पवित्र भूमि पर मुंबई, नवी मुंबई और ठाणे से साहित्यकार, कवियों में रामस्वरूप साहु, सुशील कुमार शुक्ल,लक्ष्मी यादव,संतोष पाण्डेय,संजय द्विवेदी,डा.दिनेश प्रताप सिंह,ऐड.अनिल कुमार शर्मा, ‘छितिज’ नंदलाल,’राही’ अनिल कुमार ,शिवशंकर मिश्र,कमल’ लालबहादुर यादव,मुन्ना सिंह विलय, ‘खूंटातोड़’ आर बी सिंह,ओमप्रकाश सिंह,रघुवंशी’ रामप्यारे सिंह,’रघुवंशी’दर्शना सिंह,शिवपूजन सिंह,चंद्रमणि सिंह,रंजना सिंह,’साकी’ ग्वालियरी,सुशील कुमार सिंह,अनन्या यादव आदि प्रमुख रूप से उपस्थित थे।सभी कवियों, गीतकारों, ग़ज़लकारों ने सभी उपस्थित श्रोताओं को अपने-अपने साहित्यिक रंगों से रंग दिया,जिनमें कुछ की रचनाएँ इस प्रकार रही –
 ओमप्रकाश सिंह ने बड़ी मार्मिक गीत देश के नाम पढीं जो सराहनीय रही-
हर दिल मे धधक आज, और आँखों मे है पानी ।
हर हिँद के लोगों की है बस एक कहानी,
एक सिर के बदले,जब तलक दस सिर न कटेगा ।
धधकेगी आग कम कभी न होगी रवानी ।।
कोखोँ ने दिया दान मे है लाल देश को
नवयौवनाओं नेदीया सुहाग देश को ।
ये दुथमुहे भी भूलगए दूथ की महक
नापाकियोँ केखून से निखरेगी जवानी ।
मोदी तुम भीमबनके दिखाओ इस देशको,
बाजबा का कलेजा खिलाओगे ईस देशको
हम खून पीने केलिए तैयार बैठे हैं
कहीँ ठँडी न हो जाये ये दबी आग पुरानी ।।
कितना बहेगा पानी, बहियेगी ये आँखें,
माताओं को बहनों को,रूलायेँगी ये आँखे
कितनी टुटेँगी चुडियां नवयौवनाओं की,
क्या कहकर दुधमुहो को समझायेँगी ये आँखे ।।
हर जिस्म कीहुँकार ये कहती है कहानी ।।
 कवि अनिल कुमार  राही जी की होली गीत भी प्रसंसनीय रही –
ये   होली  रंगो  का  त्यौहार ।
रॅगों से आज सजी बाज़ार ।
लुटाओ प्यार सभी पर आज
करो  तुम  रंगो  की  बौछार ।।।।
चलो मन मथुरा अवध के द्वार
सिया   और  राधा  के  दरबार।
कि  संग में राम और घनश्याम
मनायें””” होली   का   त्यौहार ।।
करो   सब   रंगो  की  बौछार ।
ये   होली    रंगों  का  त्यौहार ।।
लिए  सब  रंगो का उन्माद
ये फागुन लाया है मधुमास ।
कि खोलो सारे मन के द्वार
करो तुम अतिथि का सत्कार ।।
ये होली  रंगो का त्यौहार
करो तुम रंगो की बौछार ।।
उठे झंकार बजे सुर-ताल
कि भीगें प्रेम के रंग में आज ।
पहनकर सतरंगी परिधान
सजी है धरती देखो आज ।।
उडायें लाल गुलाल अबीर
धरा पे  बरसे  प्रेम  फुहार ।।
जो रूठे अब तक मेरे यार
मनायें  आज करें  मनुहार ।
चढा है  देखो रंग  कौन सा
आज  है  रंगो  की भरमार ।।
सोच समझ  के रंगना खुदको
हैं  रंगो   के  अब   रंग  हजार ।।
कि तन मन र॔ग लो मेरे यार
करो तुम रंगो की बौछार ।
लुटाओ प्यार सभी पर आज
कि होली रंगों का त्यौहार ।।
 वरिष्ठ गीतकार नंदलाल क्षितिज जी ने फाल्गुन के रंग में सभी को गाँव की मिट्टी के साथ रंग दिया –
आमो में बौर लगे सरसों के फूल से ,
अबके वसंत में प्रीत बन्धी फूल से,
नैन नैन नाच उठे पुरुवा के खेत मे,
करइल चिंघाड़ उठे बांसों के सेतु में,
मोहक उन्माद उठा महुआ की गंध में,
कविता इतराने लगी मनमौजी छंद में,
नदिया अब लहर लहर गाती मधुराग से,
जैसे कुछ कहती हो आते हुए फाग से,
ठंढी बयार बही कुंजन के कुल से,
अबके बसन्त में प्रीत बन्धी फूल से ।।
 क्षितिज जी के गीतों में कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार रही –
1-गावँ कौन सा कैसा गावँ,
नहीं रहा अब वैसा गावँ,
मुरझाए चेहरे है सबके
माँग रहा है पैसा गावँ ।
2-खेतवै में जब नगर बसाई,
तब का खैया ठेंगा ।
धरती में जब फसल न उपजी
तब का करिहा ठेंगा ।
3– आऊ रे यसोदा माँ के छलिया कृष्ण आऊ,
म्हारे संग नाच गाव बांसुरी बजाव रे ।।
 हास्य-व्यंग्यकार आर बी सिंह खूंटातोड़ ने पहले सत्र में होली गीत पर स्वरचित गीत सुनाया –
टिस मारे फगुनी बयरिया,
मनवां देला झकझोर,
याद आवे सईयाँ के सूरतिया
कब जुङतीहें हियरवा मोर ।।
 जबकि दूसरे सत्र में चैत्र रामनवमी उत्सव के ध्यानार्थ –
 दशरथ के चारो ललनवां हो अंगना मे खेंलैं-खेलैं ।।
 एडवोकेट अनिल शर्मा व्यंगकार की भूमिका निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी  –
बहकावे में आइके , मत करना कछु भूल  !
वरना तुम बन जाओगे,हैप्पी एप्रिल फूल !!
हैप्पी एप्रिल फूल , अजी बहुत शर्माओगे  !
सभी हँसेंगे समक्ष,तुम मूरख बन जाओगे !!
कहत शर्मा मुसकाय , सबही विस्वास भुनावे  !
अपुना तो मस्ती करहि , अरु सभन को बहकावे  !!
इसी प्रकार सभी साहित्यकारों ने माथेरान के पहाड़ी पर खूब रंग बरसाये और एक यादगार साम बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी वहीं जौनपुर के बदलापुर निवासी माथेरान के मार्गदर्शक तिवारी जी ने संगीतमय होली गीत से लोगों को आनंदित कर दिया ।
अंत में कार्यक्रम को समाप्त करने के पूर्व संयोजक श्री रामप्यारे सिंह रघुवंशी जी ने सभी उपस्थित सभी साहित्यकारों व मुख्य अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद दिया ।