भारतीयता के कारण भारत की पहचान हो रही है – डॉ. अरूण विजय

ठाणे | ठाणे के जैन मुनि डॉ. अरुण विजय ने कहा कि प्राचीन काल के इतिहास का एक कालखंड ऐसा था , जब समग्र विश्व में भारत की पहचान विश्व गुरु विद्या गुरु के रूप में बहुत बड़ी तथा बहुत ऊंची पहचान थी , देश विदेश से विद्या उपार्जन हेतु लोग आते थे और कई विषयों का ज्ञान अर्जन करके जाते थे , एक समय भारत के इतिहास में ऐसा भी था जब सोने की चिड़िया के रूप में भी भारत की प्रसिद्धि थी , ब्रिटिश लोग भारत से हजारों टन सोना , चांदी पानी के जहाज भर कर लेकर गए , यवन आक्रांता भारत पर युद्ध करके भारत में 1000 साल तक लूट चलाई और भारत का सोना , चांदी लूट कर लेकर गए चाहे वह सिकंदर हो या कोई भी हो , ऐसे कई आक्रांता आये जो भारत को लुट ले गए आजादी के बाद भी सैकड़ों धन कुबेरोने भारत की संपत्ति अलग तरीके से ही सही लेकिन लूटकर स्विस बैंकों में लाखों की संपत्ति इकट्ठी की थी  |

इटली से आई और भारत के प्रधानमंत्री की पत्नी बनकर वह मायके से ही सब कुछ नहीं लाई थी लेकिन विधवा होने के बावजूद भी आज भी उसने खरबों की संपत्ति बनाई है आखिर देश की संपत्ति नहीं तो क्या इटली की है ? सोचिए भारत को इतना मधुमक्खी के छत्ते की तरह नीचोड़ा गया है फिर भी क्या आश्चर्य है कि यह देश अब तक भी भिखारी बन नहीं पाया है , देश की सबसे पुरानी राजकीय पार्टी के कई नेताओं ने इतना धन माल लूट कर इकट्ठा किया है कि जिसकी कल्पना नहीं कर सकते हैं लेकिन यह सच्चाई है |

गुरुदेव ने आज प्रश्न पूछा कि विदेशों में या सारी दुनिया के वैश्विक मानचित्र पर भारत की पहचान क्या कैसी तथा किन कारणों से है ? भले ही भारत की पहचान एक धन संपन्न देश के रूप में नहीं है फिर भी देश प्रेम , राष्ट्रप्रेम की भावना वालों से भरा पड़ा है कि नहीं ? भारतीय जनता को देश प्रेम , राष्ट्र हित की भावना सीखानी नहीं पड़ती है और कोई भी नेता हमेशा कोशिश करता है तो वह यदि विश्वगुरु बनाना है तो व्यक्तिगत रूप से सभी लोग सामूहिक प्रयास करें तो सफलता आपके चरण चूमने का इंतजार करती है , बस आवश्यकता है मात्र प्रामाणिकता से अभिव्यक्ति की देश के प्रति अपनी निष्ठा बढ़ाकर विश्व को विश्व गुरु के रूप में भारत की पहचान कराएं |