युवा साहित्यकार पंकज तिवारी का हुआ एकल काव्यपाठ

मुंबई |     अखिल भारतीय काव्य मंच मुंबई के तत्वावधान में संस्थापक अंजनी कुमार द्विवेदी , अध्यक्ष सुभाष राहत बरेली , प्रमुख सचिव अर्पित मिश्रा के आयोजन व अतुल सिंह अक्स के संयोजन में 1 सितम्बर 2020 को युवा साहित्यकार , गीतकार पंकज तिवारी का भव्य एकल काव्यपाठ संपन्न हुआ पंकज शैक्षणिक काल से ही साहित्य सेवी व समाजसेवी व्यक्ति रहें है उन्होंने कविता के साथ-साथ चित्रकार , कला समीक्षक की भी भूमिका निभाई है वे भाषा – हिंदी , अवधी तथा भोजपुरी मे रचना करते है संपादक के रूप में बखार कला पत्रिका चलाई और इस समय काव्यसृजन साहित्यिक संस्था दिल्ली इकाई के अध्यक्ष भी है ललित कला में शिक्षा , लगभग ५०० रेखांकन कथादेश , परिंदे , परिकथा , अंजुमन जैसे विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित , लगभग ४०० साहित्यिक पुस्तकों , पत्रिकाओं ( बोधि प्रकाशन , लोकोदय प्रकाशन , रश्मि प्रकाशन आदि) के आवरण निर्मित प्रदर्शनी भी की गयी राज्य ललित कला अकादमी उ.प्र. सहित लगभग दर्जनों जगहों पर चित्र प्रर्दशित और पुरस्कृत , इनके द्वारा लिखित काव्य प्रकाशन- यशोभूमि , सामना , वृत्तमित्र , अमर उजाला , दैनिक जागरण , मंतव्य , सिरिजन , संझवत , भोजपुरी साहित्य सरिता , प्रतिलिपि , हिंदी समय , अनहद कोलकाता , हमरंग आदि जैसे पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित होती है कला समीक्षा – लगभग दर्जनों कला समीक्षाएं प्रकाशित , आकाशवाणी वाराणसी , ओबरा एवं मुंबई से कविताएं एवं वार्ता प्रसारित , करीब दर्जनों कविता पोस्टर निर्मित , २००४ में तत्कालीन प्रधानमंत्री बाजपेई द्वारा कविता के क्षेत्र में प्रशस्ति पत्र प्राप्त , २०११ में राइटर्स एवं जर्नलिस्ट एसोसिएशन महाराष्ट्र द्वारा युवा काव्य भूषण से सम्मानित हो चुके है और आपको बता दे कि इनका जन्म जौनपुर उ.प्र. में हुआ और वर्तमान निवास नई दिल्ली है    |

एकल काव्यपाठ की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार रही जो सराहनीय रही 

1 – मै कैसे भूल जाऊं साथ तेरा तूँ बता बरगद
     बिना तेरे बचेगा गाँव में क्या तूँ बता बरगद                                                                             

     शहर के नाम पर क्या गाँव का संहार कर डालूँ
     करेंगे सांस के बिन इस शहर का क्या बता बरगद

2 – हंस के तुम जिंदगी काट दो, हंस के हम जिंदगी काट दें
     आओ खाएं कसम मेरी जां, पेड़ पौधों को ना काट लें
     ईश द्वारा प्रदय दान है, इस धरा का ये अभिमान है
     इसको मन में बसा के रखो, हर बदन में यही जान है
     चैन की सांस हो जीने की आस हो फिर प्रकृति का ही हम साथ दें ।
     आओ खाएं कसम मेरी जां, पेड़ पौधों को ना काट दें | 

3 – चाहते मत य….. पालो गुजर-बसर कर लो।
     ….धियां नफरतों की है, सतर्क पर कर लो।।
     उड़ान नभ में अकेले भरोगे, भटकोगे।
     बना सको मुझे अपना, तो हमसफ़र कर लो।।

4 – कल-कल बहती नदी य…. पर झर – झर झरता है झरना
     सोने की चिड़िया है भारत, प्रकृति मनोहर है गहना

   मन में सबके देश प्रेम है पग-पग प्रेम अथाह य…..
   दिल से दिल का मेल य….. है, द्वेष कपट की बात क…..
   अमन चैन से रहना सीखो, धर्म ग्रंथ का है कहना
   सोने की चिड़िया है भारत, प्रकृति मनोहर है गहना

5 – भक्तों पे पड़ा संकट दुख दूर करो भगवन
     कष्टों को भागने पर मजबूर करो भगवन
     कब तक यूं रहें डर कर मर-मर के जियें कैसे
     पग-पग तम का घेरा, प्रभु पार मिले कैसे
     भेजी है तुम्हें अर्जी, मंजूर करो भगवन
     भक्तों पे पड़ा संकट दुख दूर करो भगवन

6 – मैं बीभत्स भयानक ….., पर उसका गुस्सा नकली है।
     कद्दू के जस पेट हमारा, वो पापड़ सी पतली है।।
     मैं डरावना बम जैसा …..वो दीपक के लौ जैसी।
     मैं धतुरे के फल जैसा वो मिठी काजू कतली है।।

7 – …..व धड़कन है, …..व जीवन है।
     …..व खुशियों से भरा …..गन है।।
     …..व को छोड़के तूं क्यों आया?
     …..व का कद्र नहीं कर पाया।।
     …..व ही तो दिलों में बसता है।
     …..व के बिन क….., क्या बचता है?

8 – मिलकर दीप जलाना होगा।
     तिमिर के आगे जाना होगा।।

     राह कठिन है कांटो वाली,
     पर इसके ही पार उजाला।
     हार मान लेने से अच्छा,
     है लड़कर मर जाने वाला।।
     घुट-घुट कर जीना, क्या जीना,
     डटकर पथ पर आना होगा।

9 – ऐ बृहस्पति देव सबके कष्ट को हर लीजिए
     है सकल संसार भय में अब कृपा कर दीजिए
     कब तलक भटकेगा मानव इस अंधेरी राह में
     सबके मन से डर हटाके रौशनी भर दीजिए

10 – रात भर तनहा रहा मैं, रोग से डरने लगा।
      लक्षणों के बीच मैं, तनहा सफर करने लगा।।
      धड़कने बढ़ने लगीं थीं, दम निकलने को हुआ।
      डर भगाके लड़ गया फिर, डर को डर लगने लगा।।

11 – हर तरफ तम का सागर है फैला, रो रहा मन का हर एक कोना।
       घर, शहर, दहशतों के कहर में, डस रहा है क्यों पापी कोरोना?
       देशसेवा में सत्ता पुलिस है आमजन को घरों में है रहना
       जो भी, जैसे भी हों साथ दें बस, हर घड़ी सावधानी बरतना
       देव बनकर डटे स्वास्थकर्मी, है नमन जोड़ कर ये कहोना
       घर, शहर, दहशतों के कहर में, डस रहा है क्यों पापी कोरोना?

12 – मेरा पति बेचारा पइसा उगले निगले सूखी रोटी
       मेरा पति बेचारा..

बच्चों के भले के खातिर वो, बैलों सा नधा ही रहता है।
       घर आते ही मैं चाहूँ जहाँ, खूंटे से बंधा ही रहता है।।
       जब कभी-कभी गुर्राते हैं मूछों पे अँगुलियां जाती है।
       आते ही ज़ब्त पगार करुं तब अकल ठिकाने आती है।।
       तब अकल …… मेरा पति बेचारा…..

13 – हम तो मुसाफिर यहाँ दुनिया में हमारा क्या है
       जिंदगी तूँ ही बता मौत से प्यारा क्या है

       फ़लसफ़ा लाख सुझाते यहाँ ज्ञानी-ध्यानी
       जीत ले दिल जो दूसरों का वो हारा क्या है ।।