व्यापार का विस्तार बढ़ाइए, क्षेत्रीय सीमाओं का नहीं-डॉ.अरूण विजय

ठाणे | सदियों शताब्दियों से देश के व्यापारी अपने व्यापार का विस्तार करते ही थे.आज जैसे बड़े-बड़े यंत्रों वाले हवाई जहाज या जल के जहाज नहीं थे तब भी भारत के व्यापारी अपना माल सामान देश में बना कर विदेशों में भेजते थे उस 2सौ से तीन सौ वर्षों पहले के काल में भी व्यापार चलता था, विदेशों के साथ इसे व्यापारी सीमा का विस्तरण कहते थे आज से ढाई हजार वर्षों पहले भगवान महावीर ने निर्वाण के समय जो उपदेश दिया था, उसका जो पूर्ण आगम शास्त्र बना, उसका नाम उतराध्ययन सूत्र है उसमें भी दो तीन अध्ययनों में समुद्री मार्गो से व्यापारार्थ अन्य अन्य देशों में जाते – आते रहते थे ऐसा उल्लेख मिलता है इसी तरह लाखों वर्षों पहले श्रीपाल राजा आदि जो कि समुद्री मार्ग से कपड़े के पर्दे बांधे हुए जो हवा के दबाव से चलते थे ऐसे वाहनों से बहुत बड़ा व्यापार करते थे , ऐसा भी इतिहास गवाह है इस तरह व्यापार की कोई सीमाएं नहीं होती थी |

कोई प्रतिबंध नहीं होता था कोई भी व्यक्ति अपने क्षेत्र में जिस प्रकार के संसाधन आदि जहां ज्यादा या विपुल प्रमाण में उपलब्ध रहते थे, उससे विशिष्ट प्रकार की वस्तुएं बनाकर दूर सूदूर ले जाते थे दूसरा है अपने-अपने क्षेत्रों का विस्तार सबका अपना-अपना राज्य और राज्यों की चारों दिशाओं की सीमा इसके कारण सीमित ही क्षेत्र का राज्य रहता था क्षेत्र का विस्तार बढ़ाने की सीमावर्ती इलाकों के प्रदेशों के राजाओं के साथ युद्ध करने की नौबत आती थी, ऐसे सैकड़ों महत्वाकांक्षी कई राजाओं ने युद्ध करके उन्हें हराकर भगाया और अपने राज्य की सीमा बढ़ाई इस तरह सैकड़ों वर्षो से कई लोगों ने विस्तारवादी नीति अपनाई है इसमें मत्स्य गला गल न्याय की तरह बड़ी बलवान मछली छोटी मछली को खा जाती है इसी तरह बड़े बड़े बलवान राजा छोटे छोटे राजा ऊपर चढ़ाई युद्ध करके उनको हराकर उनका राज्य हड़प लेते थे उन्हें गुलाम बना देते थे आज भी ऐसी विस्तारवादी नीति तो चल ही रही है प्रचलन व्यवहार ही बन गया है. महाराज ने आज बताया कि सर्वप्रथम जन्मजात या पुण्य उदय से जिसको जो मिला है जितना मिला है उसी में संतुष्ट रहें और असंतोष से लोभ न कर रखें दूसरों का हड़पने की नीति न बनाएं जो है जितना है उसमें प्रत्येक राजा अपनी प्रजा का हित देखें क्लेश कषाय कलह लड़ाई युद्ध की नीति न अपनाएं यह घातक है लाखों का संहार हो जाता है खून की नदियां बहती हैं विस्तारवादि नीति छोड़कर व्यापार-व्यवसाय का विस्तरण ही हितावह है  |