गुरुदेव की 65वी पुण्यतिथी पर विशेष

ठाणे  ।  वल्लभ गुरुदेव का जन्म सवंत 1927 जन्म कार्तिक शुक्ल 2 बड़ौदा गुजरात मे हुआ था , आपके पिता का नाम दीपचन्द भाई व माता का नाम इच्छा देवी था , आप राघनपुर (गुजरात) में सवंत 1943 वैशाख शुक्ल त्रयोदशी को दीक्षा लेकर न्यायभोनिधि आचार्य श्रीमद विजय विद्यानन्द सूरीश्वरजी के शिष्य हर्ष विजयी के शिष्य घोषित हुए   ।
महान पुरुष इस संसार मे जन्म लेकर सब पर उपकार का ही महान कार्य करते है इस हेतु कहा भी गया है “परोपकार सता विभूतय” सज्जनों की संपत्ति परोपकार के लिए होती है , मोमबत्ती स्वयं जलकर दुसरो को प्रकाश देती है , फूल दूसरों के पैरों तले कुचलकर भी सुंगध फैलाता है , उसी प्रकार महापुरुषों का जीवन स्वयं दुख और कष्टों को सहन कर दुसरो को सुख देने वाला होता है , आज से लगभग 118 साल पहले गुजरात की पुण्यभूमी पर ऐसे ही एक गौरवशाली संत का जन्म हुआ था     ।

और वो थे विजय वल्लभ जिन्होंने भर यौवन में संसार के सुखों से ठुकराया  व इच्छा माता की अंतिम इच्छा की पूर्ति के लिए गुरु आत्म के चरणों मे जीवन समर्पित करके संयम सरिता में स्नान कर मातृभूमि के एक बड़ा जगत सुंदर के समक्ष प्रस्तुत किया और पिता दीपचंद के कुल में कुल दीपक जैसे प्रकाशित हुए , गुरुदेव ने अपने जीवन मे जो भी कार्य किये वे आबाल वृद्धों के लिए आजीवन हितकारी है    ।

उन्होंने किसी समाज, राष्ट्र या देश को ही नही किन्तु जन-जन को अपने पैरों पर खड़ा किया , युवकों को आगे बढ़ाया ,गुरुदेव के पास भावी युग को समझने की अनेक दिव्य और दीर्घ दृष्टि थी  ।