माँ शैलपुत्री का वर्णन :- ज्योतिषाचार्य पं अतुल शास्त्री

ठाणे |     ज्योतिषाचार्य अतुल शास्त्री ने बताया कि पहले दिन माँ दुर्गा के नवरूप के पहले स्वरूप शैलपुत्री की पूजा होती है शैल का अर्थ शिखर होता हैं शैलराज हिमालय की कन्या होने के कारण माँ दुर्गा का यह स्वरूप शैलपुत्री कहलाया , ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम हैं पौराणिक कथाओं के अनुसार मां शैलपुत्री अपने पूर्वजन्म में दक्ष – प्रजापति की पुत्री सती थीं , जिनका विवाह भगवान शिव से हुआ था शास्‍त्रों के अनुसार माता शैलपुत्री का स्वरुप अति दिव्य है मां के दाहिने हाथ में भगवान शिव द्वारा दिया गया त्रिशूल है जबकि मां के बाएं हाथ में भगवान विष्‍णु द्वारा प्रदत्‍त कमल का फूल सुशोभित है मां शैलपुत्री बैल पर सवारी करती हैं बैल अर्थात वृषभ पर सवार होने के कारण देवी शैलपुत्री को वृषारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता है इन्‍हें समस्त वन्य जीव – जंतुओं का रक्षक माना जाता है माँ शैलपुत्री की अराधना करने से आकस्मिक आपदाओं से मुक्ति मिलती है तथा मां की प्रतिमा स्थापित होने के बाद उस स्थान पर आपदा , रोग , व्‍याधि , संक्रमण का खतरा नहीं होता तथा जीव निश्चिंत होकर उस स्‍थान पर अपना जीवन व्यतीत कर सकते हैं शैलपुत्री के रूप की उपासना करते समय निम्‍न मंत्र का उच्‍चारण करने से मां जल्‍दी प्रसन्‍न होती हैं तथा वांछित फल प्रदान करने में सहायता करती हैं   |

मंत्र :- वन्देवांछितलाभायचंद्राद्र्धकृतशेखराम | वृषारूढ़ा शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम ।।

शैलपुत्री के पूजन करने से मूलाधार चक्र जाग्रत होता है जिससे अनेक प्रकार की उपलब्धियां प्राप्त होती हैं इस दिन उपासना में योगी अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं यहीं से उनकी योगसाधना का आरम्भ होता है माँ शैलपुत्री को सफेद चीजों का भोग लगाया जाता है और अगर यह गाय के घी में बनी हों तो व्यक्ति को रोगों से मुक्ति मिलती है और हर तरह की बीमारी दूर होती है माँ शैलपुत्री का प्रिय रंग लाल है    |